उदयपुर : भारत में कृषि विकास हेतु सरकारी संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने मशरूम अनुसंधान के लिए मशरूम निदेशालय चंबाघाट, सोलन (हिमाचल प्रदेश) में संस्थान खोल रखा है. इस के अंतर्गत विभिन्न राज्यों में जंगली खाद्य एवं औषधीय मशरूम के संग्रहण, संवर्धन एवं प्रयोगशाला में उगाने के लिए अनुसंधान हेतु अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना चलाई जा रही है.

इस के अंतर्ग़त राजस्थान में भी महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के राजस्थान कृषि महाविधालय के पादप रोग विज्ञान विभाग में अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना संचालित है.

परियोजना के प्रभारी व एसोसिएट प्रोफैसर डा. नारायण लाल मीना ने बताया कि इस वर्ष सरकार के उद्देश्य के अनुसार जून से अगस्त माह तक राजस्थान के विभिन्न जंगलों, वन्य जीव अभ्यारणों और पश्चिम राजस्थान के रेगिस्तान में देसूरी की नाल, पाली जोधपुर, पोकरण, जैसलमेर, तनोट, पाकिस्तान बार्डर, फलोदी, सिवाना, आहोर, बालोतरा, झालोर, सिरोही, सादड़ी, कुंभलगढ़, गोगुंदा एवं रोड साइड एरिया औफ उदयपुर का सर्वे मशरूम की विभिन्न प्रजातियों का पता लगाने एवं संग्रहण करने के लिए अनुसंधान टीम ने किया.

सर्वे के दौरान विभिन्न जेनरा के कुल 100 मशरूम स्पीशीज का संग्रहण किया गया और मशरूम प्रयोगशाला, उदयपुर में विभिन्न मशरूमों का संवर्धन का काम कर दिया गया है. इन में विशेषकर रेगिस्तानी पौष्टिक मशरूम जैसे फेलोरानिया इन्कुइनान्स, पौडाएक्सिस पिस्टीलारिस, टेलोस्टोमा स्पीशीज, ब्लू ओएस्टर ,जंगली दूधछाता, ब्राउन ओएस्टर, सफेद ओएस्टर, ट्राईकोलोमा सल्फुरियम एवं एगेरिकस प्रजाति प्रमुख रूप से है, क्योंकि रेगिस्तानी खुंबी फेलोरानिया इन्कुइनान्स, पौडाएक्सिस पिस्टीलारिस, टेलोस्टोमा स्पीशीज को प्रयोगशाला में अभी तक उगाया नहीं जा सका है.

इस के लिए अनुसंधान टीम के डा. एनएल मीना, अविनाश कुमार नागदा और किसान सिंह राजपूत ने कृत्रिम रूप से उगाने का प्रयास तेज कर दिया है. इन मशरूमों का पौष्टिक एवं औषधीय महत्व अधिक होता है. इस के चलते पश्चिम राजस्थान के व्यक्ति प्रथम वर्षा के उपरांत रेतीले टीलों पर उगी मशरूम संग्रहित कर के बाजार में 400-500 रुपए प्रति किलोग्राम में बेच कर आमदानी प्राप्त करते हैं और व्यक्ति बड़े चाव से खुंबी की सब्जी बना कर खाते हैं और शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों की आपूर्ति करते हैं व अपनी सेहत को दुरुस्त रखते हैं.  अनुसंधान में सफलता से पश्चिम राजस्थान के अलावा पूरे देश में मशरूम उत्पादन की क्रांति आ जाएगी.

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