सीतापुर : वर्तमान में कृषि शिक्षा मे युवाओं की दिलचस्पी बढ़ी है. पिछले कुछ वर्षों से मैडिकल, इंजीनियरिंग और प्रबंधन जैसे विषयों में रोजगार के अवसरों में कमी आई, लेकिन कृषि में रोजगार की स्थिति काफी बेहतर है. इसलिए युवा प्रतिभा कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित हो रही है. किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफ़ा कैसे मिले ,कौन से समय में किस फसल की बोआई की जाए. इन विभिन्न विषयों पर जिले के युवा किसानों को खेतीबारी का ककहरा कृषि विज्ञान केंद्र, अंबरपुर में सीख रहे हैं.
केंद्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. विनोद कुमार सिंह ने बताया कि आज के समय में यह कहना कि कृषि शिक्षा में युवा इसलिए आ रहे हैं कि वे समाज की सेवा कर सकें, पूरी तरह से सच नहीं होगा. वास्तविकता तो यह है कि कृषि शिक्षा में रोजगार के अधिक साधन मुहैया हैं, इसीलिए युवा कृषि शिक्षा की ओर आकर्षित हो रहे हैं. पर, यह भी सच है कि उन के मन में कुछ नया करने के सपने हैं. आवश्यक है कि हम उन के सपने को साकार करने में मदद करें.

कृषि विज्ञान केंद्र पर कई युवाओं ने मशरूम उत्पादन, और्गेनिक गुड़ उत्पादन इकाई, पोल्ट्री फार्म, वर्मी कंपोस्ट बनाने जैसे विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त कर आज अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

कृषि की इन पद्धतियों को अपना रहे हैं किसान

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (IFS)

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम यानी एकीकृत कृषि प्रणाली विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए है. बड़े किसान भी इस प्रणाली के जरीए खेती कर के मुनाफा कमा सकते हैं. एकीकृत कृषि प्रणाली का मुख्य उद्देश्य खेती की जमीन के हर हिस्से का सही तरीके से इस्तेमाल करना है. इस के तहत आप एक ही साथ अलगअलग फसल, फूल, सब्जी, मवेशीपालन, फल उत्पादन, मधुमक्खीपालन, मछलीपालन इत्यादि कर सकते हैं. इस से आप अपने संसाधनों का पूरा इस्तेमाल कर पाएंगे. लागत में कमी आएगी और उत्पादकता बढ़ेगी. एकीकृत कृषि प्रणाली पर्यावरण के अनुकूल है और यह खेत की उर्वराशक्ति को भी बढ़ाती है.

मचान विधि से लतावर्गीय सब्जियों की खेती

मचान में लौकी, खीरा, करेला जैसी बेल वाली फसलों की खेती की जा सकती है. इस में खेत में बांस या तार का जाल बना कर सब्जियों की बेल को जमीन से ऊपर पहुंचाया जाता है. इस विधि का उपयोग करने से किसान अपनी फसल 90-95 फीसदी तक बचा सकते हैं. बारिश के मौसम में सब्जी की खेती करने वाले किसानों के लिए खेती की ये तकनीक वरदान साबित हो सकती है.

बता दें कि मचान पर पानी जमा नहीं होता है, जिस की वजह से किसान की फसलों के सड़ने का खतरा कम हो जाता है. इस के अलावा फसल में यदि कोई रोग लगता है, तो मचान के माध्यम से दवा छिड़कने में भी आसानी होती है.

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