उदयपुर: 28 नवंबर, 2023. ’’कृषि क्षेत्र में भविष्य की संभावनाएं व चुनौतियां’’ विषय पर कृषि वैज्ञानिकों ने गहन विचारविमर्श किया. साथ ही, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एवं धानुका एग्रीटैक लिमिटेड के बीच समझौता ज्ञापन यानी एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए. आगामी 5 साल के लिए हुए इस करार के तहत कृषि शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार गतिविधियों के साथ कृषि में नवाचार व रोजगारोन्मुखी बनाने पर जोर दिया जाएगा. समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर धानुका ग्रुप के अध्यक्ष आरजी अग्रवाल एवं कुलपति, एमपीयूएटी, डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने हस्ताक्षर किए.

एमओयू का प्रमुख मकसद शिक्षाविदों, एमएससी में उत्कृष्टता के लिए बीएससी (कृषि) के दौरान एमपीयूएटी के छात्रों को फैलोशिप प्रदान करना है. साथ ही, पीएचडी, अनुसंधान और विकास गतिविधियों को प्रोन्नत करने के लिए फसलों में कीटनाशकों के छिड़काव और क्षेत्र के अध्ययन में ड्रोन के उपयोग के विभिन्न विकल्पों का पता लगाया जाएगा.

एमओयू के मुताबिक, धानुका द्वारा प्रायोजित ड्रोन अनुप्रयोगों के माध्यम से जैव प्रभावकारिता और फाइटोटौक्सिीसिटी परीक्षणों का संचालन का जिम्मा एमपीयूएटी का रहेगा. परीक्षणों में धानुका विशेषज्ञों की भागीदारी भी सुनिश्चित रहेगी.

खास बात यह भी है कि ड्रोन लैब की स्थापना के लिए मप्रकृप्रौविवि स्थान और विशेषज्ञता धानुका को उपलब्ध कराएगा. कृषि रसायनों के डिजाइन विकास और प्रभावी उपयोग पर अनुसंधान किया जाएगा. इस के अलावा सहयोगात्मक शोध के परिणाम वाले शोधपत्रों को संयुक्त व समान अधिकार प्राप्त होंगे, ताकि शोध पत्रिकाओं में प्रकाशन कर के ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ मिल सके.

समझौते के अनुसार, विश्वविद्यालय के अधीन कृषि विज्ञान केंद्रों के जरीए किसानों के खेतों पर प्रदर्शन के अनुकूल परीक्षण आयोजित किए जाएंगे, जहां प्रगतिशील किसानों का दौरा भी कराया जाएगा.

समझौते के तहत धानुका बिना किसी शुल्क के कृषि छात्रों को उत्पाद प्रबंधन प्रशिक्षण और प्रमाणन देेगा. फसल सुरक्षा उत्पादों के सुरक्षित उपयोग के लिए छात्रों को व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण बांटे जाएंगे. इस के अलावा विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किसान मेला, संगोष्ठी, सम्मेलन को प्रायोजित करेगा. प्लेसमेंट उद्देश्य से कैंपस साक्षात्कार में धानुका भाग लेगा, ताकि उच्च शिक्षित छात्रों को रोजगार मिल सके. नई प्रौद्योगिकियों के साथ परियोजनाएं शुरू करने पर भी विचार किया जाएगा.

उल्लेखनीय है कि धानुका एग्रीटैक लिमिटेड की स्थापना 13 फरवरी, 1985 को हुई. कंपनी तरल, धूल, पाउडर और कणिकाओं में जड़ीबूटियों, कीटनाशकों, कवकनाशी और पौधों के विकास नियामकों जैसे कृषि रसायनों की एक विस्तृत श्रंृखला के निर्माण और व्यापार में संलग्न है. गुजरात के साणंद, राजस्थान के केशवाना और जम्मूकश्मीर के ऊधमपुर में कंपनी की औद्योगिक इकाइयां हैं. स्थानीय नौजवानों, सामुदायिक विकास के मद्देनजर धानुका शिक्षा प्रदान करने हेतु प्रशिक्षण और रोजगार प्रदान करने के लिए सदैव प्रयासरत है.

बीज उत्पादन के लिए राजस्थान की भूमि सर्वोतम:

संस्थागत विकास योजना व राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के सौजन्य से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि उद्योगपति एवं धानुका एग्रीटैक लिमिटेड के अध्यक्ष आरजी अग्रवाल ने कहा कि वे स्वयं राजस्थान के हैं और ऐसे में राज्य के कृषि छात्रों के भविष्य एवं किसानों की खुशहाली के लिए हर संभव मदद को तत्पर रहेंगे. 80 के दशक में उर्वरक एवं कृषि रसायन के क्षेत्र में कदम रखने वाली धानुका एग्रीटैक कंपनी कृषि के माध्यम से भारत को अग्रणी देशों में देखने को न केवल आतुर है, बल्कि निरंतर प्रयासरत है.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय सभागार में आयोजित कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि व पूर्व निदेशक भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान व मेज (मक्का) मैन के नाम से प्रख्यात वैज्ञानिक डा. साईं दास ने कहा कि राजस्थान की माटी, जलवायु हर प्रकार के बीज उत्पादन के लिए मुफीद है. दक्षिणी राजस्थान में सिंगल क्रास हाईब्रिड मक्का की खेती डा. साईं दास की ही देन है.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि डा. साईं दास ने बदलते जलवायु परिदृश्य में मक्का किस्म का परिचय कराया. साथ ही, विश्वविद्यालय की विभिन्न उपलब्धियां गिनाईं.

उन्होंने  कृषि विज्ञान केंद्रों को मंदिर की संज्ञा देते हुए कहा कि केवीके इतने सुदृढ़ होने चाहिए कि किसानों की हर जरूरत की भरपाई वहां हो सके और विगत एक वर्ष में इस के लिए विशेष प्रयास हुए हैं, जो सराहनीय है.

कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक, भूरालाल पाटीदार ने बताया कि दक्षिणी राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा कृषि जोन-चतुर्थ ए एवं बी में आता है. यहां की प्रमुख खरीफ फसल मक्का है. कृषि विज्ञानी डा. साईं दास ने बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर में सीड रिप्लेसमेंट की दिशा में बेहतर काम किया है. इस के लिये उन्हें सदैव याद किया जाएगा.

भूरालाल पाटीदार ने आगे कहा कि दक्षिणी राजस्थान में मक्का प्रोसैसिंग यूनिट की सख्त आवश्यकता है, ताकि इलाके के किसानों को मक्का उत्पादन का समुचित प्रतिफल मिल सके.

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