सुगंधित धान काला नमक अपने न्यूट्रेशन वैल्यू और एरोमा के चलते पूरी दुनिया में अहम पहचान रखता है. वैसे तो काला नमक धान की खेती देश के अलगअलग हिस्सों में व्यावसायिक लेवल पर किए जाने के प्रयास जारी हैं, लेकिन इस की मूल पहचान उत्तर प्रदेश के नेपाल बार्डर से सटे जिले सिद्धार्थ नगर से है, क्योंकि यहां के बर्डपुर ब्लौक से ले कर जनपद के कई ब्लौकों की विशेष जलवायु के चलते काला नमक चावल की गुणवत्ता, स्वाद और महक दूसरे जिलों से कई गुना बेहतर है. इसलिए सिद्धार्थ नगर जिले के काला नमक चावल की मांग देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी खूब है.

कुछ साल पहले तक सिद्धार्थ नगर जिले के काला नमक धान की खूबी को देखते हुए बाहर के व्यापारी फसल कटने से पहले जिले में डेरा जमाए बैठे रहते थे और किसानों से औनेपौने दामों पर खरीदारी कर काला नमक चावल को औनलाइन और औफलाइन लगभग 300 रुपए प्रति किलोग्राम तक तक बेचते थे, जबकि यही व्यापारी किसानों से 70 से 100 रुपए प्रति किलोग्राम के मामूली रेट में खरीद रहे थे.

‘एक जिला एक उत्पाद’ के तहत काला नमक धान को मिली पहचान

सिद्धार्थ नगर जिले में ऐसे हजारों किसान थे, जिन के काला नमक चावल की खूबी के हिसाब से किसानों को वाजिब रेट नहीं मिल पा रहे थे. उन्हीं में से एक उस्का बाजार निवासी श्रीधर पांडेय भी काला नमक चावल के उचित रेट न मिलने से परेशान थे. वे अकसर जिले के आला अधिकारियों की बैठकों में काला नमक धान को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए अपनी आवाज मुखर करते रहे. आखिर जिले के आला अधिकारियों ने किसान श्रीधर पांडेय की बात को गंभीरता से लिया और सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘एक जिला एक उत्पाद’ के तहत काला नमक धान को शामिल करने की संस्तुति भेजी. सरकार ने जिले की विशेष पहचान काला नमक चावल को आखिर अपनी मुहर लगा दी.

किसान श्रीधर पांडेय की इस मांग के पूरा होने से जिले की माटी में उपजी काला नमक चावल की ख्याति दिनप्रतिदिन बढ़ती गई और क्योंकि ‘एक जिला एक उत्पाद’ में चयन होने के बाद अब इसे वैश्विक स्तर पर भी पहचान मिलने लगी.

एक किसान की पहल ने आढ़तियों से दिलाया छुटकारा

काला नमक धान के ‘एक जिला एक उत्पाद’ में शामिल कराए जाने के बाद अब किसान श्रीधर पांडेय जिले के काला नमक धान उत्पादक किसानों को वाजिब रेट दिलाने की मुहिम में जुट चुके थे. इस के लिए उन्होंने सब से पहले काला नमक धान की खेती करने वाले किसानों को एकजुट करना शुरू किया और इस के बाजार में वाजिब रेट और उस की खूबी को बताया, तो जनपद के किसानों ने श्रीधर पांडेय को अपना अगुआ बनाते हुए काला नमक चावल की वाजिब कीमत दिलाए जाने के लिए पहल करने का अनुरोध किया.

इस के बाद श्रीधर पांडेय ने किसानों को एकजुट कर किसानों की अगुआई वाली एक फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी बनाने का निर्णय लिया और किसानों की सहमति से काला नमक धान को ले कर कपिलवस्तु फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड बना डाली.

किसानों की इस कंपनी के बन जाने से काला नमक धान की खेती करने वाले किसान सीधे अपने चावल की बिक्री कंपनी को करने लगे, जिस से उन का मुनाफा दोगुना से भी ज्यादा बढ़ गया.

जो किसान पहले अपने देशी काला नमक चावल को मुश्किल से 90 रुपया प्रति किलोग्राम तक बेच पाते थे, वही अब श्रीधर पांडेय की कंपनी से जुड़ने पर 160 रुपया प्रति किलोग्राम तक अपने चावल बेचने में कामयाब हो रहे हैं. इस से जो आढ़ती किसानों से जिस दाम पर चावल खरीद रहे थे, उन का वर्चस्व टूट गया.

औनलाइन ईकौमर्स कंपनियों से सप्लाई

श्रीधर पांडेय काला नमक चावल के वाजिब रेट दिलाने के अपने संकल्प पर आगे बढ़ते हुए औनलाइन ईकामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट से भी गठजोड़ करने में कामयाब रहे. उन्होंने बीते 2 साल अपर मुख्य सचिव रहे नवनीत सहगल के साथ वर्चुअल कार्यक्रम में उस समय के जिलाधिकारी दीपक मीणा की मौजूदगी में 250 किलोग्राम की पहली खेप को हरी झंडी दिखा कर भेजा था. इस के बाद किसानों के काला नमक चावल की मांग में जबरदस्त उछाल देखा गया.

श्रीधर पांडेय का कहना है कि जो किसान अपने काला नमक चावल को औनेपौने दाम में बेचने को मजबूर थे, उन्हीं के चावल अब फ्लिपकार्ट के जरीए दुनियाभर में पहुंच रहा है.

Farmer

3 बार मुख्यमंत्री से मिल चुका सम्मान

जनपद सिद्धार्थ नगर के ‘एक जिला एक उत्पाद’ में शामिल काला नमक चावल को वैश्विक पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए मुख्ययमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों 3 बार सम्मानित होने का मौका मिल चुका है.

जनपद के इस प्रगतिशील किसान की पहल मेहनत, लगन और जुनून के चलते काला नमक चावल आज पूरी दुनिया में अपनी खुशबू बिखेर रहा है.

श्रीधर पांडेय ने बताया कि ब्रिटिश हुकूमत में उन के जन्मस्थान उस्का बाजार से जलमार्ग (कूड़ा नदी) से नाव द्वारा विदेशों को चावल निर्यात किया जाता था. लेकिन आजादी के 5 दशक बाद भी काला नमक चावल एक दायरे में सिमट कर रह गया था. इस को फिर से उस की असल पहचान दिलाने के लिए श्रीधर पांडेय ने जिले से ले कर प्रदेश और देश स्तर पर इस की वकालत शुरू की. साथ ही, उन्होंने काला नमक धान के बीज की आनुवांशिक शुद्धता को बनाए रखने के लिए बीज संरक्षण एवं उत्पादन के लिए किसानों के साथ सघन प्रयास शुरू किया है, जिस के चलते वर्ष 2018 में काला नमक चावल फिर से पुनः केंद्र और राज्य सरकार के प्रमुख ध्यानाकर्षण का केंद्र बन गया और ‘एक जिला एक उत्पाद’ जैसी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना का अंग बन कर सिद्धार्थ नगर जनपद के मुख्य उत्पाद के रूप में चुना गया है.

इस सफलता के बाद 2 मई, 2018 को सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान, लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान युवा समाजसेवी श्रीधर पांडेय को पहली बार सम्मानित होने मौका मिला था. इस के बाद काला नमक धान के लिए किए जा रहे उन के प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री के हाथों 3 बार पुरस्कृत होने का अवसर मिल चुका है.

जीआई टैगिंग से मिली विशेष पहचान

श्रीधर पांडेय ने बताया कि काला नमक धान में प्रोटीन, आयरन और जिंक जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इस में जहां जिंक चार गुना, आयरन तिगुना और प्रोटीन दोगुना अन्य किस्मों की तुलना में अधिक पाया जाता है. यही वजह है कि काला नमक चावल को कुपोषण दूर करने के लिए भी खाया जाता है.

जनपद के किसानों द्वारा बनाए गए एफपीओ द्वारा लगातार काला नमक धान की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जिस से उन की आमदनी को बढ़ाया जा सके, क्योंकि काला नमक चावल की ऊंची कीमत आम चावल के मुकाबले चार गुना तक अधिक मिलती है और चावल बेचने के लिए भी किसानों को परेशान नहीं होना पड़ता है.

किसान श्रीधर पांडेय ने बताया कि काला नमक धान के लिए 11 जिलों को जीआई टैग मिला था. लेकिन इस बार यह जीआई टैग किसानों के नाम से स्वयं होगा. इस से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काला नमक चावल की कीमत और मांग बढ़ जाएगी.

उन्होंने बताया कि भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग एक प्रतीक है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उस के मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है.

उन्होंने जानकारी दी कि जीआई टैग बताता है कि विशेष उत्पाद किस जगह पैदा होता है. जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है, जो अपने क्षेत्र की विशेषता रखते हैं. काला नमक धान भी उन्हीं में से एक है.

उन्होंने बताया कि भारत द्वारा संसद में वर्ष 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस औफ गुड्स’ लागू किया था, जिस के तहत ही जीआई टैगिंग की जाती है.

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