उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के गांव गौरा के किसान राममूर्ति मिश्र का नाम उन्नतशील किसानों में गिना जाता है. उन्होंने खेती में नवाचार अपनाया और पहचान बनाने में कामयाबी पाई. वे उन्नत खेती की बदौलत न केवल खुद की माली हालत सुधारने में कामयाब रहे हैं, बल्कि आसपास के किसानों की आमदनी में इजाफा करने में भी कामयाब रहे हैं.

राममूर्ति मिश्र के नक्शेकदम पर चल कर सैकड़ों किसानों ने पारंपरिक खेती के साथसाथ तकनीकी खेती अपना कर खुद की तरक्की के रास्ते खोले हैं.

यों हुई शुरुआत : 55 साल के राममूर्ति मिश्र ने वकालत की डिगरी हासिल की और कुछ दिनों तक उन्होंने कोर्ट में वकालत का पेशा भी किया. लेकिन भाइयों की नौकरी गांव के बाहर लगने के चलते उन के परिवार में खेतीबारी का काम करने वाला कोई नहीं रहा. ऐसे में खेती का काम पूरी तरह से ठप सा हो गया. उन्हें लगा कि परिवार के दूसरे सदस्यों के बाहर नौकरी पर चले जाने के लिए वकालत का पेशा छोड़ गांव आ गए.

जब उन्होंने खेती संभाली तो आसपास के ज्यादातर किसान खेती के घाटे से दोचार हो रहे थे इसलिए उन्होंने ऐसी खेती करने की ठानी जिस में लागत कम हो और मुनाफा ज्यादा. पैदा किए गए खेती उत्पाद की मार्केटिंग में भी कोई समस्या न आए.

उन्होंने इस समस्या का समाधान ढूंढ़ने की कोशिश की तो कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के कृषि वैज्ञानिकों के संपर्क में आए.

राममूर्ति मिश्र को यहां के वैज्ञानिकों ने कम लागत वाली व्यावसायिक खेती पर तकनीकी और व्यावहारिक जानकारी दी.

कृषि विज्ञान केंद्र से मिली जानकारी और तकनीकी जानकारी के आधार पर उन्होंने अपने खेतों में नए सिरे से खेती की जो आगे चल कर तरक्की की वजह बनी.

नकदी फसल राजमा की खेती से की शुरुआत : राममूर्ति मिश्र ने पारंपरिक रूप से की जाने वाले गन्ने की फसल को छोड़ राजमा की खेती करने का फैसला किया क्योंकि उन्हें गन्ने की फसल की न तो सही कीमत मिल पा रही थी और न ही समय से पैसा.

कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में राजमा की फसल को बोया, तो पहली बार में उन्हें इतना उत्पादन मिला जो गन्ने के मुकाबले ज्यादा मुनाफा देने वाला रहा.

चूंकि उन्होंने पहली बार खुद ही राजमा को बाजार में खुले में बेचा था, इसलिए उम्मीद से कम मुनाफा मिला. इसलिए उन्होंने राजमा को पैकिंग कर के बेचने का फैसला लिया और दूसरी बार उन्होंने 3 एकड़ खेत में राजमा की फसल ली. उन्हें 12 क्विंटल की उपज मिली, जिस से उन्हें तकरीबन 50,000 रुपए की आमदनी हुई. तब से वह निरंतर राजमा की खेती करते आ रहे हैं.

जैविक सब्जियों की रहती है भारी मांग : राममूर्ति मिश्र ने राजमा की खेती करने के अलावा नकदी फसल के रूप में सब्जियों की खेती करने की ठानी. पहली बार में उन्होंने टमाटर और लौकी की फसल ली तो उन्हें मंडी में उत्पादकों की तरह सामान्य रेट मिला इसलिए उन्होंने दूसरे किसानों से ज्यादा फायदा लेने  लिए जैविक तरीके से सब्जियों को उगाने का फैसला लिया.

घर पर ही उन्होंने वर्मी कंपोस्ट, नाडेप गड्ढा और देशी खाद के गड्ढे तैयार कराए. इस में उन्होंने पशुओं से मिलने वाले गोबर का इस्तेमाल किया, साथ ही आसपास के पशुपालकों से भी गोबर खरीद कर उस से जैविक खाद तैयार करना शुरू किया. इस का इस्तेमाल वह सब्जियों की खेती में करते हैं, जबकि सब्जियों में कीटबीमारियों की रोकथाम के लिए वे जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं. इस वजह से इन के द्वारा उत्पादित सब्जियां देखने में ज्यादा सेहतमंद रहती हैं जो दूसरों की सेहत के नजरिए से ज्यादा मुफीद होती हैं.

शुरुआती दौर में राममूर्ति मिश्र को जैविक सब्जियों के दाम भी सामान्य मिले, लेकिन जब जैविक तरीके से सब्जियों की क्वालिटी के बारे में लोगों को वे समझाने में कामयाब हुए हैं तब से उन के जैविक सब्जियों के दाम सामान्य से डेढ़ गुना ज्यादा मिलते हैं. उन के द्वारा उगाई गई सब्जियों के बाजार में अच्छे खरीदार हैं. वर्तमान में वे पालक, करेला, सोया, मेथी, मूली, मटर, टमाटर, भिंडी वगैरह की खेती कर रहे हैं.

सुगंधित धान की खेती के जरीए बिखेर रहे सुगंध : नकदी फसलों के अलावा वे काला नमक और बासमती की कई उन्नत प्रजातियों की खेती करते हैं. उन के द्वारा उपजाए गए धान की बिक्री उन के घर से ही अच्छी कीमत पर हो जाती है. इस धान की खेती से उन्हें धान की दूसरी प्रजातियों से तिगुना मुनाफा मिलता है. सुगंधित धान की खेती के अलावा वे पारंपरिक फसलों को भी उन्नत तरीके से उपजा रहे हैं जिस में सरसों, गेहूं, अरहर, फलों की बागबानी वगैरह शामिल हैं.

दूसरे किसानों को दिखाते हैं राह : राममूर्ति मिश्र न केवल अच्छे किसान हैं बल्कि एक अच्छे प्रशिक्षक भी हैं. वर्तमान में वे सरकारी विभागों व गैरसरकारी संस्थानों में किसानों के लिए आयोजित ट्रेनिंग कार्यक्रमों में अपने अनुभव के आधार पर ट्रेनिंग देते रहते हैं. उन के अनुभव का फायदा उठा कर किसान अपने खेतों में फसल उगा कर अच्छी आमदनी ले रहे हैं.

कृषि उत्पादक कंपनी के जरीए किसानों की आमदनी बढ़ाने की कोशिश : किसान राममूर्ति मिश्र ने खेती के लंबे अनुभवों के दौरान यह महसूस किया कि किसानों को अगर खेतीबारी से जुड़ी तकनीकी जानकारी, उन्नत बीज व कृषि यंत्र समय से मुहैया हों, साथ ही, कृषि उपज की प्रोसैसिंग, ब्रांडिंग की जानकारी मुहैया कराई जाए, तो किसान खेती से अच्छी आमदनी हासिल कर सकते हैं.

उन्होंने इस के लिए किसानों को संगठित कर किसान कंपनी बनाने का फैसला किया. वर्तमान में 300 से ज्यादा किसानों के साथ ‘सिद्धार्थ फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड’ के नाम से एक कंपनी पंजीकृत कराई है जो किसानों को खेतीबारी से जुड़े उन्नत खादबीज, कृषि यंत्रों के साथ ही प्रोसैसिंग, पैकेजिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग की जानकारी मुहैया कराने के लिए काम कर रही है.

उन्होंने बताया कि वे किसान उत्पादक कंपनी या एफपीओ के जरीए किसानों के बीच से बिचौलियों के दबदबे को खत्म करने का काम कर रहे हैं. किसानों की सब से बड़ी समस्या उन की उपज की वाजिब कीमत न मिलने व मार्केटिंग की है.

इस समस्या से नजात पाने के लिए उन्होंने एफपीओ के जरीए विदेशी फसल किनोवा की खेती की तैयारी में लगे हैं क्योंकि किनोवा की सुपर फूड के रूप में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग तेजी से बढ़ रही है. किनोवा फूड की खेती कम लागत में भी की जा सकती है जबकि इस की कीमत लागत से कई गुना ज्यादा है. ऐसे में किसानों को ज्यादा मुनाफा मिल सकेगा.

राममूर्ति मिश्र किसानों की आमदनी

बढ़ाने के लिए उन्हें मिलने वाली सरकारी इमदाद पर जरा भी भरोसा नहीं करते हैं. उन का कहना है कि अगर किसानों को अपनी माली हालत सुधारनी है तो उन्हें बनिया भी बनना होगा, तभी वे खेती से अच्छी आमदनी ले सकते हैं.

वे सरकार की कर्जमाफी जैसी योजना से नाखुश हैं. उन का कहना है कि किसानों का कर्जा माफ करना उन की समस्या का स्थायी हल नहीं है. सरकार को किसानों के लिए अगर कुछ करना है तो समय से उन्नतशील खादबीज मुहैया कराए, सस्ती बिजली और सिंचाई के साधन मुहैया कराए, किसानों की कृषि उपज की समय से सही मूल्य पर खरीदारी हो, तभी किसान सुखी होगा. इस के लिए किसानों को संगठित होना होगा. किसान को अपने लिए अवसरों की तलाश कर उस का फायदा लेने की आदत डालनी होगी. अगर ऐसा होता है तो किसान कभी भी घाटे में नहीं होगा.

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