वर्ष 2022 की विदाई और 2023 का आगमन. नए वर्ष के स्वागत की औपचारिकताओं के बीच यह कलैंडर वर्ष भी हर साल की तरह एक बार फिर अपनी केंचुली बदल लेगा. लेकिन इस कलैंडर वर्ष में देश की आबादी के सब से बड़े हिस्से के किसानों ने क्या खोया और पाया क्या, इस पर निष्पक्ष चिंतन जरूरी है.

कह सकते हैं कि वर्ष 2022 की शुरुआत किसानों के मोरचे पर अस्थाई युद्ध विराम से हुई. दरअसल, तीनों कृषि कानूनों को वापस करवा कर किसानों ने कुछ हद तक देश की खेतीकिसानी का भविष्य तो बचाया, पर उन के वर्तमान के दोनों हाथ आज भी बिलकुल खाली हैं.

देश के किसानों की आय में वृद्धि अथवा देश में अरबपतियों की बढ़ती संख्या दोनों में से देश की आर्थिक समृद्धि का वास्तविक सूचकांक आखिर आप किसे मानेंगे?

सिक्के का दूसरा पहलू भी जरा देखिए. भारत सरकार की ‘द सिचुएशन एसेसमेंट सर्वे औफ फार्मर’ का कहना है कि पिछले सालों में भारत के किसान औसतन केवल 27 रुपए की रोज की कमाई कर पाए हैं.

कृषि मंत्रालय ने अन्नदाताओं की आय से संबंधित जो सब से ताजा आंकड़े जारी किए थे, उस के मुताबिक, भारत का किसान परिवार प्रतिदिन औसतन 264.94 रुपए यानी 265 रुपए कमाता है. यह एक व्यक्ति की आय नहीं है, बल्कि 5 सदस्यों के परिवार की औसत आय है.

हमारे देश में प्रति व्यक्ति आय के मामले में यहां यह बताना भी लाजिमी है कि प्राय: गरीबी, भुखमरी, बाढ़, अकाल और न्यूनतम आय के लिए जाना जाने वाला पड़ोसी बंगलादेश इस साल प्रति व्यक्ति आय के मामले में हम से आगे निकल गया है, जबकि 15 साल पहले इसी बंगलादेश की प्रति व्यक्ति आय हमारे देश की प्रति व्यक्ति आय की महज आधी थी.

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