बेंगलुरु: भाकृअनुप-भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर), बेंगलुरु में ‘‘विदेशी और कम उपयोग की गई बागबानी फसलें: प्राथमिकताएं एवं उभरते रुझान‘‘ पर 17 अक्तूबर से 19 अक्तूबर, 2023 तक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.
कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने प्रोफैसर डा. संजय कुमार सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-आईआईएचआर, बेंगलुरु, डा. एनके कृष्ण कुमार, पूर्व उपमहानिदेशक (बागबानी विज्ञान), भाकृअनुप, डा. जेसी राणा, देश के प्रतिनिधि, एलायंस औफ बायोवर्सिटी इंटरनैशनल और डा. वीबी पटेल, सहायक महानिदेशक (फल एवं रोपण फसलें), भाकृअनुप की उपस्थिति में सम्मेलन का उद्घाटन किया.
कर्नाटक के राज्यपालज थावरचंद गहलोत ने विदेशी और कम उपयोग वाली फसलों के टिकाऊ उत्पादन के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकियों के बारे में किसानों और अन्य हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए भाकृअनुप-आईआईएचआर, बेंगलुरु की सराहना की.
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि बागबानी फसलों का उत्पादन साल 1950- 51 में 25 मिलियन टन से 14 गुना बढ़ कर तकरीबन 350 मिलियन टन हो गया है और खाद्यान्न उत्पादन से भी आगे निकल गया है.
राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कहा कि आने वाले दिनों में देश कृषि, बागबानी, दुग्ध उत्पादन सहित सभी क्षेत्रों में चमकेगा और विश्व गुरु बनेगा.
इस अवसर पर पांच प्रकाशन जारी किए गए और राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने लाइसेंसधारक अर्का कमलम आरटीएस बेवरेज के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) प्रस्तुत किया.
सैमिनार में शामिल प्रमुख सिफारिशें हैं:
मुख्यधारा के अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में कम उपयोग वाली फसलों पर अनुसंधान कार्यक्रमों को समायोजित करने के लिए टास्क फोर्स समितियों का गठन किया जा सकता है. एफएओ के सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पोषण सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए जैव पूर्वेक्षण और कम उपयोग वाली फसलों के मूल्यवर्धन के क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास को मजबूत किया जा सकता है. इंटरनैशनल सैंटर फौर अंडर यूटिलाइज्ड क्रौप्स, यूके के अनुरूप महत्वपूर्ण अपितु कम उपयोग वाली बागबानी फसलों के लिए भाकृअनुप-आईआईएचआर में एक उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) स्थापित किया जा सकता है.
फसल संग्रहालयों की स्थापना के माध्यम से कम उपयोग वाली फल फसलों के संरक्षण को मुख्यधारा में लाने के लिए राष्ट्रीय और साथ ही वैश्विक नैटवर्क की स्थापना और जैव विविधता को आजीविका के अवसरों से जोड़ने के लिए कम उपयोग वाली फल फसलों के संरक्षक किसानों की पहचान एवं उन्हें मान्यता देना. पीपीवी और एफआरए संबद्ध आईटीके के साथ कम उपयोग वाली बागबानी फसलों का पंजीकरण शुरू करना शामिल था.
निर्यात के लिए गुंजाइश प्रदान करने वाले सीएसआईआर संस्थानों के सहयोग से फार्मास्युटिकल और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कम उपयोग की गई सब्जियों का उपयोग कर के पोषक तत्वों से भरपूर भोजन व उत्पादों के विकास के माध्यम से छिपी हुई भूख को हल करने के लिए कम उपयोग की गई सब्जियों सहित खाद्य स्रोतों के विविधीकरण पर जोर दिया जाना चाहिए.
नई संभावित देशी और कम उपयोग वाली सजावटी, औषधीय, सुगंधित और मसाला फसलों की पहचान करने और उन के उत्पादन, संरक्षण व कटाई के बाद प्रबंधन प्रथाओं को विकसित करने और सौंदर्य प्रसाधन, न्यूट्रास्यूटिकल्स एवं फार्माकोलौजी के लिए उन के मूल्य की आवश्यकता पर जोर दिया गया.
एफपीओ को प्रोत्साहित कर के पहचानी गई विदेशी और कम उपयोग वाली बागबानी फसलों के लिए समर्पित समूहों का विकास और घाटे को कम करने एवं रिटर्न को अधिकतम करने के लिए मूल्यवर्धन के लिए पायलट पौधों के साथ प्रभावी डेटाबेस व एकीकृत बाजार विकसित करना.
डा. टी. जानकीराम, कुलपति, डा. वाईएसआर बागबानी विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश समापन सत्र के मुख्य अतिथि थे. इस के अलावा डा. बीएनएस मूर्ति, पूर्व बागबानी आयुक्त, भारत सरकार, सम्मानित अतिथि थे.
सेमिनार में अमेरिका, आस्ट्रेलिया, यूके, इजराइल, मलयेशिया, मैक्सिको, कोरिया और जांबिया जैसे देशों के प्रतिनिधियों सहित कुल 400 प्रतिनिधियों ने भाग लिया. प्रतिभागियों में 71 विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले 24 राज्यों के लगभग 220 वैज्ञानिक, 160 छात्र और 40 आरए और एसआरएफ शामिल थे. सैमिनार में 150 किसानों और उद्यमियों ने भी हिस्सा लिया.