हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘वाटर एफिशिएंट क्राप कल्टीवार’ विषय पर चौथी उच्चस्तरीय समिति की बैठक का आयोजन हुआ. इस बैठक में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बीआर कंबोज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की, जबकि पंजाब विश्वविद्यालय लुधियाना के पूर्व कुलपति एवं समिति के चेयरमैन डा. बीएस ढिल्लो विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रहे.

बैठक में पीडब्ल्यूआरडीए के तकनीकी सलाहकार व पंजाब के पूर्व कृषि निदेशक राजेश वशिष्ठ, कृषि महाविद्यालय पीएयू के पूर्व अधिष्ठाता डा. एसएस कुकल एवं भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक डा. सीएल आचार्य भी उपस्थित रहे.

इस उच्चस्तरीय समिति का मुख्य उद्देश्य जल संसाधनों के अधिक दोहन को रोकना, खरीफ मौसम में कम पानी में उगाई जानी वाली किस्मों को प्रचलित करना व इन से संबंधित शोध की समीक्षा करना व अन्य संस्थानों के साथ शोध को बढावा देना है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में जल जैसे अमूल्य प्राकृतिक संसाधन के खेती में सदुपयोग करने व उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप कृषि योजना बना कर प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के महत्व के बारे में अपने विचार रखे.

उन्होंने खरीफ मौसम में कम पानी में उगाई जाने वाली व बेहतर उत्पादन देने वाली किस्मों को उगाने के लिए उन्नत सस्य क्रियाएं अपना कर जल संरक्षण करने पर जोर दिया. उन्होंने आगे यह भी कहा कि भावी पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिए जल संसाधनों का संरक्षण बहुत जरूरी है. बायोसैंसर जैसी आधुनिक तकनीक का जल संसाधनों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है. मक्का की फसल धान वाले खेतों में पानी बचाने के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है.

उन्होंने बताया कि मक्का का साइलेज 70-80 दिन में तैयार हो जाता है. साथ ही, चारे की कमी के दिनों में पशुओं के लिए यह बहुत उपयोगी होता है. इसी तरह गेहूं वाले क्षेत्रों में राया की फसल उगा कर पानी की बचत की जा सकती है. राया के बाद छोटी अवधि की फसल जैसे मूंग उगाई जा सकती है, जिस से मुनाफा बढ़ने के साथसाथ संसाधनों की बचत भी होगी.

डा. बीएस ढिल्लो ने बताया कि खरीफ के मौसम में धान की कम पानी में उगाई जाने वाली व धान की सीधी बिजाई के लिए उपयुक्त किस्मों के बारे में चर्चा की. साथ ही, खरीफ में उगाई जाने वाली दूसरी फसलें जैसे मूंग, अरहर, बाजरा व कपास की भी कम पानी में बेहतर पैदावार देने वाली किस्मों के बारे में जानकारी दी.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने बैठक में सभी का स्वागत करते हुए धानगेहूं फसल चक्र में पानी की बचत के लिए विभिन्न तकनीकों व पहलुओं पर अपने विचार रखे. उन्होंने कपास, धान, मक्का फसल की अधिक पैदावार व मुनाफा देने के साथसाथ कम पानी में उगाई जाने वाली किस्मों से संबंधित शोध को बढ़ावा देने संबंधी रणनीति के बारे में भी बताया.

डा. सीएल आचार्य ने बताया कि भूमिगत जल संसाधनों का अधिक दोहन हो रहा है, जिस के चलते पूरे देश में 151 जिले पानी की कमी से जूझ रहे हैं. साथ ही, भूमिगत पानी में पाए जाने वाले हानिकारक तत्व भी होते हैं. गत वर्ष हरियाणा, पंजाब व राजस्थान में क्रमश: 8.69, 16.98 व 11.25 बिलियन क्यूबिक मीटर भूमिगत पानी निकाला जा सकता था, जबकि 11.8, 27.8 व 16.74 बिलियन क्यूबिक मीटर भूमिगत पानी निकाला गया.

उन्होंने यह भी बताया कि आगे ऐसा समय भी आएगा, जब फ्लड सिंचाई बंद करनी होगी व अधिक दक्षता वाले सिंचाई के तरीके जैसे टपक व फव्वारा सिंचाई जैसी तकनीकों को अपनाना होगा. वहीं डा. एसएस कुकल ने बताया कि कम पानी में बेहतर पैदावार देने वाली नई किस्मों का परीक्षण अधिक से अधिक स्थानों पर करना जरूरी है, ताकि उन के नतीजे सत्यापित हो सकें. राजेश वशिष्ठ ने धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया. बैठक का संचालन डा. एसएस यादव ने किया.

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