Natural Farming : अनुसंधान निदेशक महाराणा प्रताप कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) डा. अरविंद वर्मा ने कहा कि आज भारत खाद्यान्न उत्पादन में 6.5 गुणा वृद्धि के साथ आत्मनिर्भर की श्रेणी में खड़ा है, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जनसंख्या के मामले में भी हम विश्व में अव्वल हैं. खाद्यान्न के साथसाथ दुधत्पादन , तिलहनदलहन उत्पादन में भी हम ने काफी वृद्धि की है, लेकिन यह काफी नहीं है. अब समय आ गया है कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को सहेजते हुए प्राकृतिक खेती की जड़ों को मजबूत करें.
डा. अरविंद वर्मा पिछले दिनों मंगलवार को एमपीयूएटी में प्रसार शिक्षा निदेशालय सभागार में कृषि विज्ञान केंद्रों की सालाना कार्य योजना 2025-26 की समीक्षा के लिए आयोजित कार्यशाला को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित किया. डा. अरविंद वर्मा का कहना था कि प्राकृतिक खेती भारत सरकार की 2,481 करोड़ रुपए की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना है. जिसे साल 2025-26 तक एक करोड़ किसानों तक पहुंचाने का लक्ष्य है. मिट्टी को जीवंत बनाए रखने के लिए कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ानी होगी. हमारे देश की भूमि पर आज 52 हजार 500 मैट्रिक टन रसायनों की खपत हो रही है, जो कि काफी चिंता की बात है. आज आलम यह है कि कई जीवजंतु विलुप्त हो चुके हैं, जो प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए बहुत आवश्यक है.
इस कार्यक्रम के अध्यक्ष अटारी जोधपुर के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने कहा कि प्रकृति ने हमें हवा, पानी, मिट्टी, पेड़पौधे, जीवजंतु की अनूठी सौगात दी है. हमारे पास जल काफी सीमित मात्रा में है. धरती माता को दुबारा वास्तविक स्वरूप में लाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों को यह साल प्राकृतिक खेती को समर्पित करना होगा. साथ ही किसानों को भी प्रेरित करना होगा कि वे प्राकृतिक खेती को अपनाएं. रासायन मुक्त खेती या बहुत ही कम रासायन युक्त खेती ही आगे का लक्ष्य होना चाहिए. केवीके को मौका मिल रहा हैं तो वे लीक से हट कर सर्वोत्तम लक्ष्य का चयन करे और कड़ी मेहनत से काम करें तभी किसानों और इस देश का भला होगा. उन्होंने नेचर पौजिटिव, मार्केट पौजिटिव और जेंडर पौजिटिव एग्रीकल्चर पर जोर दिया.
इस कार्यक्रम के आरंभ में प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि साल 2025-26 केवीके के लिए चुनौतीपूर्ण है, लेकिन वरिष्ठ वैज्ञानिक व प्रभारी हर चुनौती पर खरे उतरेंगे. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान जोनद्वितीय जोधपुर (अटारी) एवं महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में संभाग में कार्य कर रहे 9 कृषि विज्ञान केंद्रों के वरिष्ठ वैज्ञानिकों व प्रभारियों ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से किसानों के लिए चलाई जा रही गतिविधियों पर प्रकाश डाला. इस के साथ ही, साल 2025-26 में केवीके की क्या तैयारी है और किसानों के लिए क्या नए कार्यक्रम व अनुसंधान शुरू किए जाएंगे, इस पर पूरा रोडमैप सामने रखा.
इस कार्यशाला में राजूवास बीकानेर में पशुपालन विभाग में प्रो. डा. आरके नागदा ने कहा कि कृषि और पशुपालन विकास की बैलगाड़ी के दो पहिए हैं. कृषि विज्ञान केंद्रों को पशुपालन से जुड़ी योजनाओं को भी बढ़ावा देना होगा तभी कृषि में हम बेहतर परिणाम दे पाएंगे.
इस कार्यक्रम के तकनीकी सत्र में केवीके बांसवाड़ा के वैज्ञानिक व प्रभारी डा. बीएस भाटी, भीलवाड़ा प्रथम व द्वितीय- डा. सीएम यादव, केवीके चित्तौड़गढ़- डा. आरएल सौलंकी, डूंगरपुर- डा. सीएम बलाई, प्रतापगढ़- डा. योगेश कनोजिया, केवीके राजसमंद- डा. पीसी रेगर, केवीके उदयपुर डा. मणीराम ने साल 2025-26 की सालाना कार्य योजना प्रस्तुत की.
इस के बाद अटारी जोधपुर के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से आगामी साल 2025-26 में विभिन्न क्षेत्रो में अनुसंधान की आवश्यकता के बारे में बताते हुए कहा कि सभी कृषि विज्ञान केंद्रों को एकजुट हो कर कार्य करना होगा.
इस कार्यक्रम में अटारी जोघपुर के डा. पीपी रोहिला, डा. डीएल जांगिड़, डा. एमएस मीणा, डा. एचएच मीणा, प्रो. एसके इंटोदिया, डा. एसएस लखावत और डा. रमेश बाबू ने भी अपने विचार रखे. डा. राजीव बैराठी ने धन्यवाद ज्ञापित किया व कार्यक्रम का संचालन डा. लतिका व्यास ने किया.