सबौर : नीरा ताड़ के पेड़ का ताजा रस है, जिस का इस्तेमाल बिहार में बड़े पैमाने पर शराब बनाने के लिए किया जाता है. हालांकि, बिहार में शराब पर प्रतिबंध है, जो किसानों के लिए, खासकर टोडी निकालने वालों के लिए एक बड़ी समस्या पैदा करता है.

टोडी निकालने वाले बिहार का एक समुदाय है, जिस की सामाजिकआर्थिक स्थिति टोडी संग्रह और विपणन पर निर्भर करती है. टोडी एक नशीला पेय है, जिसे बिहार में बेचा नहीं जा सकता, क्योंकि यह शुष्क राज्य होने के कारण अवैध है.

इस संबंध में बिहार सरकार ने हाल ही में नीरा आधारित उद्योगों को शुरू किया है, ताकि इस के स्वस्थ उपभोग को बढ़ावा दिया जा सके और टोडी निकालने वालों के समुदाय को रोजगार दिया जा सके. टोडी के अलावा, नीरा को स्क्वैश, आरटीएस, गुड़ आदि जैसे विभिन्न उत्पादों में प्रोसैस किया जा सकता है. इस के अतिरिक्त, ताजा नीरा विटामिन, खनिज और अन्य स्वास्थ्यवर्धक यौगिकों का समृद्ध स्रोत है. इस का ताजा सेवन कई बीमारियों को दूर करने में मदद करता है. लेकिन ताजा नीरा का संग्रह मुश्किल है, क्योंकि यह संग्रह के तुरंत बाद किण्वन के लिए प्रवृत्त होता है और तापमान और समय अवधि बढ़ने के साथ यह बढ़ता जाता है. किण्वन को रोकने के लिए कई परिरक्षण विधियों का अभ्यास किया गया है, लेकिन अब तक कोई सही समाधान नहीं मिला है. इसलिए, किण्वन प्रक्रिया को रोके हुए ताजा नीरा को संरक्षित करने के लिए एक परिरक्षण पद्धति की आवश्यकता है.

इस पहलू में, डा. मोहम्मद वसीम सिद्दीकी, वैज्ञानिक, खाद्य विज्ञान और कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी विभाग, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने नीरा को पाउडर के रूप में संरक्षित करने की एक प्रक्रिया विकसित की है. ताड़ के नीरा से पाउडर बनाने की प्रक्रिया को जरमनी से पेटेंट प्राप्त हुआ है. यह तकनीक नीरा उत्पादकों के लिए नए उद्यमशीलता के रास्ते खोलेगी और लंबे समय तक नीरा को सुरक्षित रखने में सहायक होगी. यह पेटेंटेड तकनीक पूरे साल नीरा के स्वाद और आनंद को लेने में मदद करेगी.

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