नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के मशरूम अनुसंधान निदेशालय चंबाघाट, सोलन (हिमाचल प्रदेश) के द्वारा संचालित अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना, उदयपुर के वैज्ञानिकों ने राजस्थान के विभिन्न वन्य जीव अभयारण्यों एवं जंगलों में खाद्य एवं औषधीय मशरूम की विविधता का अध्ययन करने के लिए जुलाईअगस्त, 2024 में सघन निरीक्षण किया गया. निरीक्षण के दौरान अभी तक कुल 64 मशरूम प्रजातियों का संग्रहण किया गया. निरीक्षण प्रमुख रूप से फुलवारी की नाल, फलासिया कोटड़ा, केवड़ा की नाल, सीता माता वन्य जीव अभ्यारण्य, प्रतापगढ़, गोगुंदा, सांडोल माता झाड़ोल व झल्लारा, सलूंबर के जंगलों का किया गया.
अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना, उदयपुर के प्रभारी व सहआचार्य डा. नारायण लाल मीना ने बताया कि दक्षिण राजस्थान के जंगलों में मशरूम की प्रजातियों में काफी विविधता पाई जाती है, क्योंकि इन जंगलों में वनस्पति की प्रजातियों में भी काफी विविधता पाई जाती है. इस वजह से मशरूम की प्रजातियों की सर्वाधिक विविधता फुलवारी की नाल, फलासिया कोटड़ा में मिली, क्योंकि फुलवारी की नाल वनस्पति की विविधता का प्रमुख क्षेत्र है.
सघन निरीक्षण के दौरान सीता माता वन्य जीव अभ्यारण्य, प्रतापगढ़ में दूध छाता मशरूम की एक नई जंगली खाद्य प्रजाति मिली, जो खेती की जाने वाली दूध छाता मशरूम से भिन्न है.
इस मशरूम की कैप का परिमाप 30 x 28 सैंटीमीटर, आकार गोलाकार, रंग दूध जैसा सफेद, तने की लंबाई 23-25 सैंटीमीटर और एक फ्रूट बौडी का वजन 2 से 2.25 किलोग्राम दर्ज किया गया है, जो कि दूध छाता मशरूम की फ्रूट बौडी का सर्वाधिक वजन है और यह बड़ी प्रकार की प्रजाति है, जिस का ऊतक संवर्धन मशरूम प्रयोगशाला, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर में कर के आगे खेती करने की तकनीक विकसित करने का अनुसंधान किया जाएगा.
इस प्रजाति की खोज करने वाली टीम में परियोजना प्रभारी डा. नारायण लाल मीना के अलावा डा. सुरेश कुमार, अविनाश कुमार नागदा व किशन सिंह राजपूत आदि थे.