Saffron Cultivation : सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में केसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक प्रोफैसर वैशाली को एक करोड़ 55 लाख रुपए की परियोजना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्वीकृत की गई है.
इसी विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफैसर केके सिंह ने कहा कि उन का प्रयास है, कि कृषि विविधीकरण पर जोर दिया जाए जिस से किसान धान, गेहूं और गन्ना फसलों से हटकर सब्जी, फूल और फल उत्पादन की तरफ भी बड़े और अगर वे सहफसली खेती को बढ़ावा देंगे तो उन की आय में वृद्धि भी होगी.
उन्होंने बताया की किसान तक केसर उत्पादन की विधि को स्टैंडर्डाइज्ड करने के लिए पहले विश्वविद्यालय में प्रयोगशाला विकसित की जाएगी और शोध के बाद इस तकनीकी को किसानों तक पहुंचाया जाएगा. इस के लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा.
इस परियोजना की अन्वेषक प्रोफैसर वैशाली ने बताया की वैसे केसर की खेती श्रीनगर और हिमाचल प्रदेश में जहां पर तापमान काफी कम रहता है, वहां पर की जाती है, लेकिन अब इस परियोजना के माध्यम से कोल्ड चैंबर को तैयार कर के उस में केसर की फसल के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया जाएगा और उस में इस की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा. किसानों को तकनीकी ज्ञान उपलब्ध कराने के लिए समयसमय पर प्रशिक्षण का आयोजन किया जाएगा. जिस से किसान भी इस तकनीक को अपना कर अपने यहां केसर का उत्पादन प्रारंभ कर सके.
निदेशक शोध डा. कमल खिलाड़ी ने बताया की इस तरह की परियोजनाओं से किसानो को लाभ होगा. यह परियोजना कृषि विश्वविद्यालय के कालेज औफ बायोटैक्नोलौजी महाविद्यालय के पादप जैव प्रौद्योगिकी संभाग को मिली है. इस परियोजना में मुख्य अन्वेषक प्रोफैसर शालिनी से अन्वेषक प्रोफैसर डा. आरएस सेंगर, डा. मनोज यादव, डा. मुकेश कुमार एवं डा. नीलेश कपूर है.
केसर की खेती
केसर की खेती यूरोप और एशियाई भागों में किया जाता है. ईरान और स्पेन जैसे देश पूरी दुनिया का 80 फीसदी केसर का उत्पादन करते हैं. केसर समुद्र तल से 1000 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर उगाया जाता है. केसर की खेती के लिए बर्फीले इलाके बेहतर माने जाते हैं. इस की खेती कर किसान भी अच्छी कमाई कर सकते हैं.
कैसर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
केसर की खेती बलुई दोमट और दोमट मिट्टी में की जाती है. लेकिन बढ़ती तकनीक और उचित देखभाल की मदद से राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में भी इस की खेती की जा सकती है. केसर की खेती के लिए जलभराव वाली जगह नहीं होनी चाहिए. क्योंकि केसर के बीज पानी में सड़ कर नष्ट हो जाते हैं. इस की खेती के लिए भूमि का पीएच मान सामान्य होना चाहिए.
जलभराव वाले खेत केसर की खेती के लिए सही नहीं होते, क्योंकि जलभराव से कंद सड़ सकते हैं. केसर के पौधे को हल्की सिंचाई की जरूरत होती है और ठंडे मौसम में इसे विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है. इस के लिए दिन में 17 डिगरी सैल्सियस और रात में 10 डिगरी सैल्सियस तापमान आदर्श माना जाता है.
केसर बोआई के लिए मिट्टी की तैयारी कैसे करें:
मिट्टी की अच्छी तैयारी के लिए गहरी जुताई करें और कुछ दिनों के लिए खेत को खुला छोड़ें ताकि धूप से हानिकारक जीवाणु नष्ट हो सके. जुताई के बाद, खेत में 20-25 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर मिट्टी की उर्वरकता और केसर की जड़ों को पोषक तत्व प्रदान करें. खेत को हल या लकड़ी के पटरे से समतल करें ताकि सिंचाई के समय पानी का समान वितरण हो और जलभराव न हो. खेत में 15-20 सैंटीमीटर ऊंची क्यारियां बनाएं. क्यारियों की चौड़ाई 1.1 मीटर और लंबाई आवश्यकता अनुसार रखें.
मुख्य उत्पादक क्षेत्र–
भारत में, केसर की खेती मुख्य रूप से जम्मूकश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में की जाती है. विशेष रूप से, कश्मीर का पांपोर क्षेत्र केसर उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. यहां की मिट्टी और जलवायु केसर की खेती के लिए आदर्श मानी जाती है.
केसर की उन्नत किस्में
रोपाई का समय : केसर की रोपाई का उचित समय अगस्त से सितंबर के बीच होता है, जब मौसम ठंडा और शुष्क होता है.
केसर की खेती के लिए प्रमुख किस्में : केसर की खेती से ज्यादा उत्पादन प्राप्त करने के लिए कुछ प्रमुख किस्में देखते हैं.
कश्मीरी केसर, ईरानी केसर, स्पैनिश केसर, अफगानी केसर, तुर्की केसर
कंद रोपाई का तरीका :
रोपाई के लिए 15-20 सैंटीमीटर की गहराई पर कंद को लगाएं।
कंदों के बीच की दूरी 10-15 सैंटीमीटर और कतारों के बीच की दूरी 20-25 सैंटीमीटर रखें.
कंद रोपने की विधि :
कंदों को हाथ से लगाएं या हल्के फावड़े का उपयोग करें.
कंदों को रोपने के बाद मिट्टी से ढक दें और हल्का सा दबा दें.
केसर के बीज बोने का सब से सही समय : केसर की फसल लगभग 6 माह में तैयार हो जाती है. केसर की अच्छी गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए केसर के बीजों को सही समय पर लगाना बहुत जरूरी है. केसर अच्छी क्वालिटी के आधार पर ही बिकता है. केसर के बीज जुलाई से सितंबर तक बरसात के मौसम की समाप्ति के बाद लगाए जाने चाहिए. इन बीजों को अगस्त के महीने में लगाना सब से अच्छा माना जाता है. अगस्त के मौसम में बीज देने के बाद इस की सूक्ष्म केसर शुरुआती सीजन में देने के लिए तैयार हो जाती है. अत्यधिक ठंड में केसर को खसरा होने का खतरा नहीं रहता है.
कीटः केसर के कंदों को सफेद सुंडिया मुख्य तौर पर नुकसान पहुंचाती हैं. इस की रोकथाम के लिए क्लोरपायरीफास धूल या 5 फीसदी दानेदार क्विनाल्फास, 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बिजाई के समय खेत में डालना उत्तम रहता है.
रोगः रोगों में कंद सड़न रोग केसर की मुख्य बीमारी है, जो कि फ्यूजेरियम सोलेनाइ नामक फफूंद के कारण होती है. इस की रोकथाम के लिए कंदों को बाविस्टिन के घोल से उपचारित करना चाहिए। अक्तूबर व अप्रैल में खड़ी फसल में बाविस्टिन से मृदा शोधित करने से भी रोगकारक बीजाणुओं की वृद्धि रूक जाती है.
उपज : शुद्ध केसर की औसतन उपज लगभग 2-5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है.
भंडारण : केसर के फूल अक्तूबर के महीने में खिलने आंरभ होतें है और नवंबर और कम उंचाई वाले क्षेत्रों में दिसंबर के पहले सप्ताह तक फूल प्राप्त कर सकते हैं. केसर के फूल को प्रतिदिन सुबह ओस सुखने के उपरांत तोड़ना चाहिए. ऐसा न करने पर इस की गुणवत्ता व उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
फूलों का रस चूसने वाली मक्खियां भी इन्हें नुकसान पहुंचाती हैं. मादा भाग को फूल से अलग करने के बाद छांवदार जगह में तब तक सुखाया जाता है, जब तक कि इन में 7 से 8 फीसदी तक नमी हो. केसर का भंडारण वायुरोधक पात्रों में किया जाता है. इसे दो या तीन साल तक भंडारित किया जा सकता है, जिस के बाद स्वाद और संगुध नष्ट हो जाती है.