उदयपुर : 10 जुलाई, 2024 को मत्स्य विभाग, उदयपुर द्वारा मत्स्य भवन परिसर में ‘राष्ट्रीय मछुआरा दिवस’ का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत में विभाग के सहायक निदेशक डा. अकील अहमद द्वारा अतिथियों एवं समस्त प्रतिभागियों का स्वागत कर इस कार्यक्रम के उद्देश्यों के बारे में जानकारी दी.

मात्स्यिकी  महाविद्यालय के पूर्व प्रोफैसर एवं डीन डा. सुबोध शर्मा ने प्रतिभागियों को बताया कि मछुआरा दिवस का आयोजन मत्स्य वैज्ञानिक डा. हीरालाल चौधरी एवं डा. केएच अलीकुन्ही द्वारा वर्ष 1957 में हारमोंस इंजेक्शन से प्रेरित प्रजनन द्वारा भारतीय मेजर कार्प मत्स्य बीज उत्पादन कराने में सफलता प्राप्त करने के उपलक्ष्य में हर साल मनाया जाता है. इस के फलस्वरूप मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में क्रांति का आगाज हुआ.

वर्तमान में उक्त तकनीक के विकास के साथ मत्स्य वैज्ञानिकों ने भारतीय मेजर कार्प के साथ विदेशी कार्प मछलिया एवं केट फिश के प्रजनन में भी उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है. भारतीय मेजर कार्प के साथ इन मछलियों का मत्स्य बीज भी किसानों को उपलब्ध होने लगा है.

पूर्व में मछली का बीज प्राकृतिक स्रोतों से संग्रहित किया जाता था, जिस के विभिन्न प्रजाति का मिश्रित मत्स्य बीज प्राप्त होता था, जबकि मत्स्य बीज उत्पादन की नवीन तकनीक के विकास के साथ किसानों को मनचाही प्रजाति का शुद्ध बीज समय पर उपलब्ध होने लगा है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मात्स्यिकी महाविद्यालय के पूर्व प्रोफैसर एवं डीन डा. एलएल शर्मा ने राष्ट्रीय मछुआरा दिवस के उपलक्ष्य में मत्स्य किसानों को अपनी बधाई संदेश में मछलीपालन की वैज्ञानिक पद्धती अपनाने एवं नवीन तकनीकों का समावेश करते हुए मत्स्य उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करने का आह्वान किया. साथ ही, राज्य में मत्स्य बीज की उपलब्ता बढाने के लिए भी प्रयास करने पर जोर दिया.

उन्होंने बताया कि 80 के दशक में ही प्रेरित प्रजनन की तकनीक के प्रयोग से स्थानीय मत्स्य प्रजाति सरसी का प्रजनन फतह सागर में सफलतापूर्वक करवाया था. कार्यक्रम में पूर्व उपनिदेशक अरुण कुमार पुरोहित, मत्स्य अधिकारी डा. दीपिका पालीवाल एवं डा. शीतल नरूका सहित उदयपुर क्षेत्र के मत्स्य किसान, मछुआरों एवं प्रगतिशील फिश फार्मर्स ने भाग लिया.

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