हिमाचल प्रदेश : हिमाचल प्रदेश के दूरदर्शी किसान हरिमन शर्मा को भारतीय कृषि में उन के परिवर्तनकारी योगदान के लिए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री (Padmashree Award) से सम्मानित किया गया है. उन्होंने एचआरएमएन-99 नामक एक अभिनव, स्वपरागण (पौधे के परागकण उसी पौधे के किसी फूल के वर्तिकाग्र पर या उसी पौधे के किसी दूसरे फूल के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं) और कम ठंड में उपजने वाली सेब की किस्म विकसित की है, जिस ने देश में सेब की बागबानी में क्रांति ला दी है. इस से भौगोलिक दृष्टि से बागबानी व्यापक हो गई है और रसदार पौष्टिक सेब की यह किस्म लोगों तक पहुंच गई है.
व्यावसायिक सेब की अन्य किस्मों को समशीतोष्ण जलवायु और लंबे समय तक शीतकालीन मौसम की आवश्यकता होती है, पर इस के विपरीत एचआरएमएन-99 की बागबानी उष्ण कटिबंधीय, उपोष्ण कटिबंधीय और मैदानी क्षेत्रों में हो सकती है, जहां गरमियों में तापमान 40-45 डिगरी सैल्सियस तक पहुंच जाता है. इस से अब उन क्षेत्रों में भी सेब की खेती संभव हो सकती है, जहां पहले इसे अव्यवहारिक माना जाता था.
मुश्किलों ने दिखाया रास्ता
बचपन में ही अनाथ हो चुके हरिमन शर्मा का बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश) स्थित छोटे से गांव पनियाला की पहाड़ी गलियों से राष्ट्रपति भवन के भव्य कक्ष तक का सफर किसान समुदाय के साथ ही देश के छात्रों, शोधकर्ताओं और बागबानी करने वालों के लिए काफी प्रेरणादायक है.
तमाम मुश्किलों के बावजूद हरिमन शर्मा ने मैट्रिक तक की शिक्षा पूरी की और खेतीकिसानी और फल उपजाने के प्रति अपना जुनून बनाए रखा.
एचआरएमएन-99 सेब किस्म की उपज की कहानी साल 1998 में तब शुरू हुई, जब हरिमन शर्मा ने अपने घर के पिछले हिस्से में घर में इस्तेमाल किए गए सेब के कुछ बीज लगा दिए. इन में से एक बीज उल्लेखनीय रूप से अगले साल अंकुरित हो गया और 1,800 फुट की ऊंचाई पर स्थित पनियाला की गरम जलवायु के बावजूद साल 2001 में पौधे ने फल दिए.
हरिमन शर्मा ने यह देखते हुए सावधानीपूर्वक मातृ पौध की देखभाल की और ग्राफ्टिंग द्वारा कई पौधे लगाए और अंततः सेब का एक समृद्ध बाग बना लिया.
अगले दशक में उन्होंने विभिन्न कलमों में ग्राफ्टिंग तकनीकों का प्रयोग कर के सेब की अभिनव किस्म को परिष्कृत करने पर ध्यान केंद्रित किया. समान जलवायु परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में इस सफलता को दोहराने के प्रयासों के बावजूद शुरुआत में उन के काम पर कृषि और वैज्ञानिक समुदायों का अधिक ध्यान नहीं गया.
सेब की नई प्रजाति को देश की सभी जलवायु में उगाना आसान
साल 2012 में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन (एनआईएफ) भारत ने इस का पता लगाया. एनआईएफ ने सेब की किस्म की विशिष्टता सत्यापित करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों, राज्य कृषि विभागों, किसानों और देशभर के स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मिल कर आणविक अध्ययन, फल गुणवत्ता परीक्षण और बहुस्थान परीक्षणों की सुविधा प्रदान कर इस की विशिष्टता प्रमाणन में सहयोग दिया.
इन सहयोगी प्रयासों से सेब की यह किस्म 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पहुंच गई. इन में बिहार, झारखंड, मणिपुर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, दादरा और नगर हवेली, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान, जम्मूकश्मीर, पंजाब, केरल, उत्तराखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, पांडिचेरी, हिमाचल प्रदेश शामिल हैं. साथ ही, इसे नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में भी लगाया गया है. एनआईएफ ने इस का पंजीकरण नई दिल्ली के पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण में करने में सहायता प्रदान की.
राष्ट्रपति से मिली सराहना
अपने अभिनव प्रयास के लिए हरिमन शर्मा को साल 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 9वें राष्ट्रीय द्विवार्षिक ग्रासरूट इनोवेशन और उत्कृष्ट पारंपरिक ज्ञान पुरस्कारों के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था.
इस के अलावा भी हरिमन शर्मा कई पुरस्कारों से सम्मानित किए गए हैं. इन में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय नवोन्मेषी किसान पुरस्कार (2016), आईएआरआई फैलो पुरस्कार (2017), डीडीजी, आईसीएआर द्वारा किसान वैज्ञानिक उपाधि (2017), राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार (2018), राष्ट्रीय कृषक सम्राट सम्मान (2018) जगजीवन राम कृषि अभिनव पुरस्कार (2019) के अलावा कई राज्य और केंद्र सरकार के पुरस्कार शामिल हैं. हरिमन शर्मा ने नवंबर, 2023 में मलेशिया में आयोजित चौथे आसियान इंडिया ग्रासरूट इनोवेशन फोरम में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था.
गुणों से भरपूर
एचआरएमएन-99 सेब की किस्म की विशेषता इस की धारीदार लालपीली त्वचा, मुलायम और रसदार गूदा और प्रति पौधा सालाना 75 किलोग्राम तक फल देने की क्षमता है. सेब की इस प्रजाति की बागबानी से देश में हजारों किसान लाभान्वित हुए हैं.
राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन ने इस की व्यावसायिक बागबानी को सहयोग देने, बाग लगाने और राज्य कृषि विभागों एवं भारत सरकार के पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के उत्तरपूर्वी परिषद के अंतर्गत उत्तरपूर्वी क्षेत्र सामुदायिक संसाधन प्रबंधन परियोजना के साथ मिल कर बड़े पैमाने पर उत्तरपूर्वी राज्यों में इस किस्म को रोपने के प्रशिक्षण प्रदान करने में भी सहायता दी है. इस के परिणामस्वरूप सभी पूर्वोत्तर राज्यों में इस किस्म के एक लाख से अधिक पौधे रोपे गए हैं, जिस से किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत मिला है.
हरिमन शर्मा के विशिष्ट नवाचार से भारत में सेब की बागबानी में उल्लेखनीय बदलाव आया है, साथ ही इस ने बड़े पैमाने पर किसानों को अतिरिक्त आय और पोषण के बेहतर स्रोत अपनाने के लिए प्रेरित किया है. उन के प्रयासों से कभी अमीरों का आहार माना जाने वाला सेब अब आम आदमी की पहुंच में आ गया है.
पद्मश्री पुरस्कार द्वारा सम्मानित हरिमन शर्मा के प्रयासों को मान्यता मिलना, राष्ट्रीय चुनौतियों के समाधान और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के साथ संरेखित स्थायी आजीविका सृजन में जमीनी स्तर के नवाचारों की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण है.