चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने कपास बीज उत्पादों से गौसीपोल को हटाने के लिए एक रासायनिक प्रक्रिया में पेटेंट हासिल किया है. इस पेटेंट को भारत सरकार की ओर से प्रमाणपत्र मिल गया है.
भारत सरकार के पेटेंट नियंत्रक की ओर से जैव रसायन, कपास अनुभाग, आनुवांशिकी और पौध प्रजनन विभाग द्वारा विकसित इस तकनीक को पेटेंट संख्या 555667 दी गई है. पेटेंट कार्य में डा. शिवानी मानधनिया, डा. राजबीर सांगवान और डा. अरुण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
कुलपति प्रो बीआर कंबोज ने कहा कि विश्वविद्यालय के लिए यह गौरव की बात है कि कपास के तेल से हानिकारक गौसीपोल यौगिक को हटाने का पेटेंट विश्वविद्यालय को प्राप्त हुआ है. इस से यह तेल खाने के लिए उपयुक्त हो जाता है. ऐसा तेल खाने से सेहत बिगड़ जाती है. गौसीपोलयुक्त तेल के सेवन से सांस लेने में तकलीफ, शरीर के वजन में कमी और कमजोरी आदि के लक्षण दिखाई देते हैं. कपास के तेल से गौसीपोल के दोनों स्टीरियोइसोमर्स को हटाना इस के सेवन के लिए बहुत जरूरी है.
पेटेंटकर्ता वैज्ञानिक डा. शिवानी मानधनिया ने हटाने गौसीपोल की तकनीकी जानकारी साझा करते हुए बताया कि बिनौले के तेल को कार्बनिक विलायक के साथ मिलाया जाता है और कुछ रासायनिक यौगिकों की उपस्थिति में फिल्टर किया जाता है, जो कि एक सोखना और अवशोषित करने के रूप में काम करता है.
उन्होंने पेटेंट के विश्लेषणात्मक कामों में प्रयुक्त उपकरण की खरीद के लिए धनराशि उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), हरियाणा सरकार का आभार व्यक्त किया.
पेटेंट की विशेषताएं:
– इस प्रक्रिया का विशेष गुण यह है कि इस में तेल को बिना उबाले गौसीपोल को हटाया जाता है, जिस से कपास के तेल के प्राकृतिक गुण बने रहते हैं.
– गौसीपोल के दोनों आइसोमर्स (+ और -) को हटाने के अलावा बिनौले के तेल से कुछ भारी धातुओं को भी हटाया गया है.
– इस प्रक्रिया को आम आदमी भी आसानी से न्यूनतम संसाधन की सहायता से गौसीपोल को हटा सकता है.
गैरपारंपरिक खाद्य तेलों में कपास के बीज का तेल अपने उच्च पोषक मूल्य, उच्च स्मोक पौइंट और विटामिन ई की उपस्थिति के कारण सब से अधिक उपयोग किया जाता है. वर्ष 2023 में तकरीबन 1.36 मिलियन मीट्रिक टन कपास के बीज के तेल का उपयोग किया गया. कपास के बीज के तेल का उपयोग आमतौर पर खाद्य उत्पादों, सलाद ड्रैसिंग और मार्जरीन के प्रकारों के उत्पादन के लिए किया जाता है.
कपास अनुभाग के प्रमुख डा. करमल सिंह ने बताया कि यह उपलब्धि वैज्ञानिकों को कपास में बेहतर शोध कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करेगी.