उदयपुर : 28 जनवरी, 2025. अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ‘पशुपालन के लिए मशीनीकरण’ (Mechanization) विषय पर 2 दिवसीय 24वीं वार्षिक राष्ट्रीय कार्यशाला अनुसंधान निदेशालय सभागार में हुई.
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की मेजबानी में आयोजित इस कार्यशाला में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली सहित देशभर के 100 से ज्यादा कृषि वैज्ञानिक, अभियंता और अनुसंधानकर्ताओं ने हिस्सा लिया.
उद्घाटन सत्र में आयुक्त पशुपालन, भारत सरकार, नई दिल्ली डा. अभिजीत मित्रा ने कहा कि कृषि पशुपालन के 3 प्रमुख घटक उत्पादन, रखरखाव एवं फूड सेफ्टी में मैकेनाइजेशन की अपार संभावनाएं हैं. डेयरी पोल्ट्री के क्षेत्र में भी मशीनीकरण (Mechanization) को तरजीह दी जानी चाहिए, तभी हम दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चल पाएंगे.
उन्होंने आगे कहा कि पशुपालकों में आज 70 फीसदी महिलाएं काम कर रही हैं. पशुपालन के क्षेत्र में केवल एक छोटे से घटक गोबर उठाना, पोल्ट्री मल व अन्य अपशिष्ट की साफसफाई के लिए भी मशीन तैयार कर ली जाए, तो मानव श्रम की काफी बचत होगी और यह श्रम अन्य कार्यों के उपयोग में आ जाएगा.
डा. अभिजीत मित्रा ने आगे कहा कि पशुपालन विभाग, नई दिल्ली भविष्य में पंचायत राज, उद्यान, कृषि विपणन और अन्य संबद्ध विभागों को साथ ले कर पशुपालन में मशीनीकरण (Mechanization) पर कुछ इस तरह का रोल मौडल तैयार करेगा, जो देशभर में ब्लौक व पंचायत लैवल पर उपयोगी साबित हो. भारत में वर्तमान में 192 मिलियन गौवंश है. इन में से 27 फीसदी क्रौस ब्रीड हैं, जबकि 10 फीसदी ही दूध उत्पादन में शामिल है.
इस बीच उन्होंने राजस्थान की गाय की नस्ल ‘थारपारकर’ का भी जिक्र किया और कहा कि ‘थारपारकर’ वह नस्लीय गाय है, जो विपरीत परिस्थितियों में थार रेगिस्तान को पार करने की क्षमता रखती है और भरपूर दूध भी देती है.
उपमहानिदेशक, आईसीएआर, नई दिल्ली डा. एसएन झा ने कहा कि मौजूदा परिवेश में पशुपालन ही नहीं, बल्कि ‘संपूर्ण मशीनीकरण’ (Mechanization) की दिशा में भी काम करना होगा. विकास के मामले में दुनिया की गति काफी तेज है और ज्ञान के बल पर ही हम इस गति का मुकाबला कर पाएंगे. उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों को हर समय अपडेट रहने को कहा.
पशुपालन के साथसाथ फार्म मैकेनाइजेशन पर जोर देते हुए डा. एसएन झा ने कहा कि केवल जलवायु, साफसफाई व आर्द्रता को नियंत्रण करने मात्र से हम दूध उत्पादन में 10 फीसदी की और भी अधिक वृद्धि कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि हमें स्वीकार करना होगा कि ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इस धरा पर पशुधन रहेगा’ पुरानी परंपराओं का त्याग करते हुए पशुधन के रखरखाव, दूध व मांस उत्पादन में वृद्धि के लिए नए तौरतरीकों को अमल में लाना होगा.
कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बेबाकी से तर्क रखा कि जल, जंगल, जलवायु और जमीन अकेले मनुष्य की बपौती नहीं हैं, वरन इस चराचर जगत में विचरण करने वाले हर जीव का इस पर अधिकार है. गलती यहां हुई कि प्रकृति की इस देन को आदमी ने अपनी बपौती मान लिया. ऐसे में जलचर, नभचर और थलचर प्राणी कहां जाएंगे भलाई इसी में है कि पशुपक्षियों को भी पर्याप्त दानापानी मिलना चाहिए, ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे.
उन्होंने पशु आहार बनाने, दूध निकालने, अपशिष्ट प्रबंधन और पानी देने की व्यवस्था के लिए भी उपकरण व मशीनरी विकसित करने पर जोर दिया. साथ ही, पशुधन के लिए बेहतर आवास, स्वच्छता व स्वास्थ्य नियंत्रण की भी आवश्यकता है.
आईसीएआर, नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक डा. अमरीश त्यागी ने कहा कि आने वाला समय क्षमता निर्माण व कौशल विकास का है. पशुपालन के लिए मशीनीकरण (Mechanization) इसी सोच का हिस्सा है. हर क्षेत्र में गहन अध्ययन, सर्वे तकनीक व प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से ही हम उपकरण और मशीन की कल्पना कर उसे साकार रूप में धरातल पर उतर पाएंगे.
परियोजना समन्वयक डा. एसपी सिंह, निदेशक, सीआईएई, भोपाल, डा. सीआर मेहता ने पशु प्रबंधन की आधुनिक तकनीकियों का जिक्र किया. आरंभ में सीटीएई डीन डा. अनुपम भटनागर ने अभियांत्रिकी महावि़द्यालय में होने वाली गतिविधियों पर प्रकाश डाला.
पुस्तक एवं पैम्फलेट का विमोचन
आरंभ में अतिथियों ने अधिष्ठाता सीडीएफडी डा. लोकेश गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक ‘आधुनिक पशुपालन एवं प्रबंधन’ एवं पैम्फलेट समुचित पशु आहार प्रबंधन, पशुचलित उन्नत कृषि यंत्र का विमोचन किया.
कार्यशाला में इन का रहा प्रतिनिधित्व
आईसीएआर-सीआईएई, भोपाल (मध्य प्रदेश), एमपीयूएटी, उदयपुर (राजस्थान), जीबीपीयूएटी, पंतनगर (उत्तराखंड), यूएएस, रायचूर (कर्नाटक), वीएनएमयू, परभणी (महाराष्ट्र), आईजीकेवी, रायपुर (छत्तीसगढ़), ओयूएटी, भुवनेश्वर (ओडिशा), आईसीएआर-एनडीआरआई, करनाल (हरियाणा) और सीएयू-सीएईपीएचटी, गंगटोक (सिक्किम).