उदयपुर: 5 मार्च, 2024. डा. राजेंद्र प्रसाद सैंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (आरपीसीएयू), समस्तीपुर, बिहार के वाइस चांसलर डा. पीएल गौतम ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2047 में सब से बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आना है. कृषि और ग्रामीण क्षेत्र सतत विकास के अभिन्न और आवश्यक घटक हैं.
इस में किसानों की आजीविका में सुधार, गरीबी कम करना, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, ग्रामीण बुनियादी ढांचे को बढ़ाना व संसाधनों और अवसरों के समान वितरण को बढ़ावा देना शामिल है. ये लक्ष्य कृषि पद्धतियों के संदर्भ में आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन बनाना चाहते हैं.
5 मार्च, 2024 को सोसायटी फौर कम्यूनिटी, मोबिलाइजेशन फौर सस्टेनेबल डवलपमैंट, नई दिल्ली व महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संयुक्त सहयोग से राजस्थान कृषि महाविद्यालय के नवीन सभागार में आयोजित ’परिवर्तनकारी कृषि और सतत विकास: बदलती दुनिया के लिए कृषि पर पुनर्विचार’ विषयक तीनदिवसीय 11वीं राष्ट्रीय सैमिनार के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि भारत के कृषि क्षेत्र को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिस ने इस की वृद्धि और विकास को बाधित किया है. अमृतकाल में विकसित राष्ट्र बनने की चाह रखने वाला देश प्रतिदिन प्रयास में लगा हुआ है. एक मजबूत कृषि क्षेत्र आंतरिक ईंधन है, जो किसी राष्ट्र की समग्र अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा को आगे बढ़ाता है.
मानवता को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और उन में से अधिकांश तेजी से बढ़ती आबादी की खाद्य सुरक्षा से जुड़ी हैं, जिस के वर्ष 2050 तक 9 बिलियन का आंकड़ा पार करने की उम्मीद है. अकेले भारत को अपने खाद्यान्न उत्पादन को बनाए रखने के लिए वर्ष 2050 तक अपने खाद्यान्न उत्पादन को दोगुना (लगभग 650 मिलियन टन) करने की आवश्यकता है.
बढ़ती आबादी कम उत्पादकता, घटती मिट्टी की उर्वरता, पानी की कमी, खंडित भूमि जोत, जलवायु परिवर्तन और बाजारों व प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुंच कृषि के सामने बड़ी चुनौतियां हैं. बढ़ती वैश्विक आबादी को देखते हुए खाद्य उत्पादन की मात्रा, प्रभावशीलता और सुरक्षा के बारे में चिंताएं भी सामने आई हैं.
अध्यक्षता करते हुए एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. अजीत कुमार कर्नाटक ने अतिथियों का विस्तृत परिचय देते हुए स्वागत किया और कहा कि हर वक्त जलवायु परिवर्तन का असर नकारात्मक नहीं होता, कभी इस के कृषि पर सकारात्मक प्रभाव भी होते हैं जैसे कि इस वर्ष जलवायु परिवर्तन की वजह से गेहूं की 20 फीसदी से अधिक उत्पादन का अनुमान है.
डा. जेपी शर्मा, पूर्व कुलपति शेर ए कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू एवं अध्यक्ष मोबिलाइजेशन ने कहा कि भारत में कृषि के लिए 0.8 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध रह गई है. खेती के लिए पानी, जमीन और किसान निरंतर कम होते जा रहे हैं. अब धीरेधीरे तीनों कम होने की कगार पर हैं. वर्ष 2050 तक हमारी आबादी बहुत अधिक हो जाएगी. इस के भरणपोषण का जिम्मा कृषि का ही है. इसलिए कृषि में जलवायु स्मार्ट कृषि की ओर कदम बढ़ाना जरूरी है.
जीरो हंगर जीरो वेस्टेज
हम अगर कृषि उत्पादन की बरबादी को बचा लें, तो हर भूखे व्यक्ति तक भोजन पहुंच पाएगा. आज का समय मार्केटिंग का है. किसानों को इस से रूबरू करना होगा.
दीनदयाल शोध संस्थान, नई दिल्ली के महासचिव अतुल जैन ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म दर्शन और नानाजी देशमुख भी आनंद शब्द पर जोर देते रहे. विकास की सभी की अपनीअपनी सोच होती है. हमें कृषि को फिर से पुरानी कृषि से जोड़ना होगा. कल्चरल प्रैक्टिसैस, रीतिरिवाज, लोककथाएं आदि उस समय थीं, जिन्हें आज हम ने पोषण उत्सव के रूप में समेटा है.
पैसिफिक ग्रुप औफ ऐजुकेशन, उदयपुर के ग्रुप चेयरमैन और यूनैस्को (एमजीआईईपी) के अध्यक्ष डा. बीपी शर्मा ने कहा कि आज सस्टेनेबल और ट्रांसफार्मिंग एग्रीकल्चर की जरूरत है. खाद्य आवश्यकताओं की जरूरतें पूरी करने के लिए भारत को वरदान है. 20 करोड़ हेक्टेयर पानी नदी में बह जाता है. पहले 20 फुट नीचे पानी आ जाता था. एक हेक्टेयर में पहले अर्थ वर्म ऊपर से नीचे आनेजाने में 6 लाख छेद कर देते थे. पहले हर कालेज में मधुमक्खी के छत्ते दिखाई देते थे, जो अब नष्ट होते जा रहे हैं. सस्टेनेबल प्रैक्टिसैस के बारे में सोचने के लिए अर्थ वर्म, वाटर रिचार्ज, इनसैक्ट्स पर विचार जरूरी है.
कुलपति को नवाजा लाइफ टाइम एचीवमैंट अवार्ड से
सोसायटी की ओर से लाइफटाइम एचीवमैंट अवार्ड एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक को प्रदान किया गया. कृषि के क्षेत्र में 40 से भी अधिक वर्षांे तक उन के शिक्षण, अनुसंधान एवं प्रसार कार्यों में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया.
इस अवसर पर डा. धृति सोलंकी, डा. राजश्री, ऋषिका नेगी, डा. अरविंद वर्मा, अमित त्रिवेदी एवं डा. हेमु द्वारा लिखित 2 पुस्तकें, कौफी टेबल बुक, कलैंडर का विमोचन किया गया. संगोष्ठी में देशभर के 12 राज्यों से तकरीबन 300 कृषि वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता और प्रगतिशील किसानों ने हिस्सा लिया.