हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से चौथी अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिस का मुख्य विषय ‘रिसेंट एडवांसेज इन एग्रीकल्चर फार आत्मनिर्भर भारत’ (आरएएएबी-2024) था. यह कार्यशाला आरवीएसकेवीवी, ग्वालियर द्वारा आभासी मोड में आयोजित की गई. कार्यशाला में मुख्य अतिथि एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट्स रिक्रूटमेंट बोर्ड (एएसआरबी), नई दिल्ली के चेयरमैन डा. संजय कुमार, चीफ पैटर्न के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में यूएएस थारवाड विश्वविद्यालय के कुलपति डा. पीएल पाटिल व आईजीकेवी, रायपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. गिरीश चंदेल इत्यादि उपस्थित रहे. कार्यशाला के आयोजक सचिव डा. अंकुर शर्मा रहे.

मुख्य अतिथि डा. संजय कुमार ने कहा कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा 2020 में की गई थी, जिस का मुख्य उद्देश्य स्थानीय उत्पादों को प्रचलित व बढ़ावा देना है और कृषि क्षेत्र सहित भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहित करना है. इस मिशन के तहत ‘मेक इन इंडिया’ के संकल्प को पूरा करने में कृषि भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. अब भारतीय कृषि न केवल उत्पादकता और लाभप्रदता पर, बल्कि स्थिरता पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है.

उन्होंने कहा कि आज के समय में कृषि पारिस्थितिकी, जैविक खेती, प्राकृतिक खेती और संरक्षण कृषि का चलन बढ़ रहा है, क्योंकि किसान तेजी से मिट्टी के स्वास्थ्य, जैव विविधता और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के महत्व को पहचान रहे हैं. इन  को अपना कर, किसान मिट्टी की उर्वरता में सुधार कर सकते हैं, मिट्टी के कटाव को कम कर सकते हैं और रसायनों के प्रयोग को कम कर सकते हैं, जिस से जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्याओं से निबटा जा सकता है.

उन्होंने आगे बताया कि नई और आधुनिक तकनीकों को अपना कर किसान अपनी फसलों के उत्पादन को बढ़ा रहा है और देश को आत्मनिर्भर बनाने में भी अपना योगदान दे रहा है.

आत्मनिर्भर भारत (Self-Reliant India)कार्यशाला के चीफ पैटर्न व हकृवि के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में कहा कि आने वाले समय में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में कृषि क्षेत्र की अह्म भूमिका रहेगी. कृषि हमेशा से हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है. यह लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करती है और हमारी विशाल आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है. हाल ही के वर्षों में,  इस क्षेत्र में उत्पादकता, स्थिरता और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कृषि पद्धतियों और प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जो इस क्षेत्र को बढ़ाने और आत्मनिर्भरता की दिशा में हमारे संकल्प को मजबूत करने में मदद करेगी.

उन्होंने आगे बताया कि आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण और उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए देश को उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम करनी होगी, स्थानीय उत्पादों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना होगा और उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के बारे में भी सोचना होगा. कृषि क्षेत्र में युवाओं और हितधारकों को आकर्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि कृषि शिक्षा आत्मनिर्भर भारत के लिए सब से अच्छे रोडमैप में से एक हो सकती है, क्योंकि यह कृषि आधारित स्टार्टअप के लिए आधार तैयार करती है.

उन्होंने कहा कि फसल उत्पादन बढ़ाने और युवाओं की कृषि क्षेत्र में भागीदारी बढ़ाने के लिए जीपीएस, सेंसर, ड्रोन और डेटा एनालिटिक्स जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करने की जरूरत है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय भी किसानों के हित के लिए शोध कार्यों, नवीनतम तकनीकों,  शैक्षणिक गतिविधियों व विस्तार कार्यों जैसी गतिविधियों से भारत को आत्मनिर्भर बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.

इस दौरान एग्रीमीट फांउडेशन, यूपी की अध्यक्ष डा. हर्षदीप कौर द्वारा कार्यशाला में भाग लेने वाले अतिथियों का परिचय करवाया गया. कार्यशाला में आरएलबीसीएयू, झांसी, उत्तर प्रदेश के अनुसंधान निदेशक डा. एसके चतुर्वेदी, एसकेएलटीएसएचयू, तेलंगाना की कुलपति डा. नीरजा प्रभाकर,  आईसीएआर-डीसीआर, पुटुर के निदेशक डा. जेडी अडिगा, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के कुलपति प्रो. एके शुक्ला ने भी अपने विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिए.

आईसीएआर-एनआईबीएसएम, रायपुर के संयुक्त निदेशक डा. अनिल दीक्षित ने सभी का स्वागत किया, जबकि कार्यशाला के अंत में आईसीएआर-एनआईबीएसएम, रायपुर, छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिक डा. एन. अश्विनी ने धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया.

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