Water Management: भारत की प्राथमिक क्षेत्र ‘कृषि’ को रीढ़’ कहा जाता है, क्योंकि यह खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करता है और किसानों व कृषि मजदूरों के रूप में लगभग 54 फीसदी कार्यबल प्रदान करता है. यह जान कर खुशी होती है कि भारतीय कृषि ने अपनी स्वतंत्रता के बाद से पिछले 78 सालों के दौरान पोषक तत्वों, जल उपयोग दक्षता व फसल उत्पादकता के बारे में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया है, जिस का श्रेय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित वैज्ञानिक उन्नत प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को दिया जा सकता है.
यद्यपि, इस क्षेत्र को जलवायु संबंधित प्राकृतिक आपदाओं, मृदा और जल संसाधनों के घटते आधार, छोटी भूमि क्षेत्रों, मृदा और जल प्रदूषण आदि के रूप में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए हमें अमृत काल 1947 तक विकसित भारत के लिए प्रस्तावित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जलवायु अनुकूल और सतत जल प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है.
इस अवधि के दौरान भारत 550 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन हासिल करने का लक्ष्य ले कर चल रहा है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें कुशल जल संसाधन प्रबंधन और जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के दोहरे उद्देश्यों के साथ बहुआयामी प्रबंधन योजना पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.
‘ग्लेशियर संरक्षण : विश्व जल दिवस-2025’ का विषय जैसा कि हम 22 मार्च, 2025 को ‘विश्व जल दिवस’ मना रहे हैं, हम अपना ध्यान इस के केंद्रीय विषय यानी ग्लेशियर संरक्षण पर केंद्रित करेंगे.
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय हिमालय में लगभग 9,575 ग्लेशियर मौजूद हैं. ग्लेशियर काफी मात्रा में मीठे पानी का भंडारण करते हैं और उन्हें धीरेधीरे छोड़ते हैं, जो मानव जाति के लिए बहुपयोगी है. वे पृथ्वी की जलवायु को संतुलित और विनियमित करने, जैव विविधता को बनाए रखने, कृषि, पीने के लिए साफ पानी और बिजली उत्पादन के लिए जल संसाधन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
यद्यपि, इन ग्लेशियरों को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के रूप में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. परिणामस्वरूप, भारत के हिमालयी क्षेत्र सहित पूरे विश्व में इन के गलने की उच्च दर देखी जा रही है. इस से हिमनद झीलों का विस्तार होगा, जिस से नीचे की ओर विनाशकारी बाढ़ आ सकती है.
इस के अलावा ग्लेशियर की मात्रा में कमी के चलते कृषि क्षेत्र को जल संसाधनों में गिरावट का सामना करना पड़ेगा. इसलिए, हमें इस मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन को संरक्षित करने की जरूरत है.
सतत जल प्रबंधन एक उपाय
फसल उत्पादन के लिए जल जरूरी है. सिंचाई के लिए बढ़ते जल संसाधनों ने खाद्यान्न उत्पादन में तेजी लाने में काफी योगदान दिया है. देश में शुद्ध बोआई क्षेत्र के 141 मिलियन हेक्टेयर में से शुद्ध सिंचित क्षेत्र लगभग 78 मिलियन हेक्टेयर (55 फीसदी) है और शेष 63 मिलियन हेक्टेयर (45 फीसदी ) वर्षा सिंचित क्षेत्र के अंतर्गत है.
वर्तमान में भारत में 112.2 मिलियन हेक्टेयर सकल सिंचित क्षेत्र है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (साल 2015) के विजन 2050 दस्तावेज के अनुसार, 1498 (बीसीएम) की अनुमानित कुल जल मांग की तुलना में उपलब्ध आपूर्ति केवल 1121 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है.
ग्लेशियर पिघलने के कारण कृषि के लिए पानी की उपलब्धता में कमी की पृष्ठभूमि में एकीकृत जल प्रबंधन कार्य योजना पर ध्यान देने की जरूरत है. घरेलू, औद्योगिक और ऊर्जा क्षेत्रों में अतिरिक्त जल की मांग के लिए साल 2050 तक अतिरिक्त 222 बीसीएम पानी की जरूरत होगी. नतीजतन, भारत में कृषि में सिंचाई क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाला पानी वर्तमान में 80 फीसदी से घट कर साल 2050 तक 74 फीसदी होने की उम्मीद है.
उभरते परिदृश्यों को देखते हुए अब चुनौती जल की प्रति इकाई मात्रा में अधिक फसल का उत्पादन करना है. भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र और नीति अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक कृषि के लिए संसाधनों की उपलब्धता, खाद्य मांग में वृद्धि की तुलना में धीमी दर से बढ़ेगी और इसलिए कृषि उत्पादों की भविष्य की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने के लिए हमें साल 2050 तक जल उत्पादकता में दोगुना वृद्धि करने की जरूरत है.
साल 2047 तक विकसित भारत के उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में कम होते जल संसाधनों से 550 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन के परिदृश्य के तहत हमें अमृत काल (2047) तक कृषि में अपनी सिंचाई दक्षता को 38 फीसदी से 65 फीसदी तक सुधारने के लिए सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन कार्ययोजना निष्पादित करनी होगी.
जल निकायों के पुनरुद्धार के माध्यम से प्रति व्यक्ति जल भंडारण में वृद्धि 2050 तक भारत की आबादी 1.67 बिलियन होने की संभावना है, जिस के परिणामस्वरूप जल, भोजन और ऊर्जा की मांग में वृद्धि होगी. व्यापक बांध निर्माण गतिविधियों के रूप में भारत सरकार द्वारा की गई पहलों के कारण, भारत में बड़े बांधों (जलाशयों) की कुल संख्या 5264 के आंकड़े को पार कर चुकी है. इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 171.1 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का लगभग 66.36 फीसदी यानी 257.8 बीसीएम है. यद्यपि, भारत के प्रति व्यक्ति भंडारण को 190 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति के वर्तमान स्तर से सुधारने की आवश्यकता है.
एक प्रमुख चिंता जलाशयों में अवसादन है, जो भंडारण क्षमता को काफी कम कर देता है. भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए, अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों क्षेत्रों की आवश्यकताओं पर विचार करते हुए जलाशय नियंत्रण प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए. वर्षा जल संचयन संरचनाओं के माध्यम से जल भंडारण बुनियादी ढांचे का निर्माण महत्वपूर्ण है और भारत सरकार का अमृत सरोवर मिशन जिसे वर्ष 2022 में शुरू किया गया था, उस के द्वारा 68,000 से अधिक जल निकायों का निर्माण या नवीनीकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
हमें उच्च जल उपयोग दक्षता प्राप्त करने के लिए उपलब्ध जल संसाधनों से मेल खाते हुए उपयुक्त फसल पैटर्न तैयार करने की आवश्यकता है. चावल और गन्ने जैसी जल गहन फसलों से दलहन और तिलहन जैसी कम जल मांग वाली फसलों को चरणबद्ध तरीके से फसल विविधीकरण कर बड़े क्षेत्र में फसलों की खेती करने की आवश्यकता है, जिस से कि अधिक से अधिक संख्या में छोटे और सीमांत किसान लाभान्वित होंगे.
हालांकि, फसल विविधीकरण योजना वर्षा, मिट्टी के प्रकार, जल के अंतर, मौजूदा फसल उत्पादकता और किसानों की शुद्ध आय पर विचार करते हुए एक सूचकांक पर आधारित होनी चाहिए.
सूक्ष्म सिंचाई और सुनियोजित जल प्रबंधन की जरूरत
भारत में सूक्ष्म सिंचाई के तहत 3.1 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र (साल 1992) से बढ़ कर 16.7 मिलियन हेक्टेयर (साल 2023) हो गया है. यद्यपि, सूक्ष्म सिंचाई की सांद्रता कुछ ही राज्यों में है और हमें इसे अन्य राज्यों में भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जहां संभावनाएं मौजूद हैं. भारत के 5 राज्य कर्नाटक (2.42 मिलियन हेक्टेयर), राजस्थान (2.09 मिलियन हेक्टेयर), महाराष्ट्र (2.03 मिलियन हेक्टेयर), आंध्र प्रदेश (1.92 मिलियन हेक्टेयर) और गुजरात (1.70 मिलियन हेक्टेयर) मिल कर सूक्ष्म सिंचाई में लगभग 70 फीसदी (10.16 मिलियन हेक्टेयर) का योगदान करते हैं. अमृत काल 2047 तक सूक्ष्म सिंचाई के तहत इष्टतम क्षेत्र प्राप्त करने के लिए, विभिन्न समितियों द्वारा सुझाए गए सभी संभावित राज्यों में सिंचाई के बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के प्रयास किए जाने चाहिए.
हमें सुनियोजित/सटीक सिंचाई प्रणाली पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो सही समय पर और सही तरीके से पौधे को इष्टतम मात्रा में जल आपूर्ति को सुनिश्चित करता है. यह परिवर्तनीय दर सिंचाई के माध्यम से जल तनाव के संदर्भ में भूमि के विषमता कारक को भी संबोधित करता है. सूचना प्रौद्योगिकी, मशीन लर्निंग, भौगोलिक स्थिति प्रणाली (जीपीएस), भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), ड्रोन आधारित निगरानी और स्वचालन में आधुनिक विकास के आगमन के साथ, आईओटी सक्षम सटीक सिंचाई प्रणाली अब और अधिक मजबूत हो गई है.
हाल की प्रगति ने सतह और भूजल सिंचाई दोनों में स्वचालन के अनुप्रयोग की सुविधा प्रदान की है, जो अधिकतम जल उपयोग दक्षता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करता है. जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित मृदा नमी सैंसर आधारित स्वचालित बेसिन सिंचाई प्रणाली में 3 मुख्य इकाइयां शामिल हैं : एक संवेदन इकाई, एक संचार इकाई और एक नियंत्रण इकाई है और यह गेहूं में पारंपरिक मैन्युअल रूप से नियंत्रित प्रणाली की तुलना में 25 फीसदी पानी की बचत में मदद करता है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रदान की गई तकनीकी सहायता से राष्ट्रीय जल मिशन द्वारा विकसित राज्य विशिष्ट जल प्रबंधन कार्ययोजनाओं को भारतीय कृषि की जीत सुनिश्चित करने के लिए कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है. ये योजनाएं संबंधित राज्यों में कृषि पारिस्थितिक स्थितियों और जल संसाधन उपलब्धता और फसल जल की मांग को देखते हुए तैयार की गई हैं.
कुलमिला कर, सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. समय की मांग है कि संस्थागत और तकनीकी दोनों हस्तक्षेपों को एकीकृत किया जाए और जल और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए किसानों के खेतों में अच्छी तरह से सिद्ध औन फार्म जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को बढ़ाया जाए, जिस से अमृत काल 2047 तक विकसित भारत के उद्देश्य को पूरा किया जा सके.