मेरठ: सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में ‘खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए सतत कृषि पद्धतियों’ विषय पर आयोजित 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का कार्यक्रम हुआ.
मुख्य अतिथि शाकुंभरी विश्वविद्यालय, सहारनपुर के कुलपति प्रो. एचएस सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए सभी लोगों का प्रयास होना चाहिए कि हम जल, जंगल और जमीन का संरक्षण करें.
उन्होंने वैज्ञानिकों से कहा कि कि पहले हम लैंड टू लैब रिसर्च को प्राथमिकता देते थे, लेकिन अब समय की मांग है कि हम को किसानों के खेतों पर जाना होगा और उन की आवश्यकता के अनुसार अपनी लैब में शोध करना होगा. उस के बाद किसानों को तकनीकी देनी होगी.
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत से ही आज हम खाद्यान्न संकट से उबर पाए हैं, लेकिन बढ़ती हुई आबादी एक चुनौती है. वैज्ञानिकों का प्रयास होना चाहिए कि वह अब खाद्यान्न सुरक्षा के साथसाथ पोषण सुरक्षा पर भी ध्यान दें, जिस से लोगों को हाईजीनिक अनाज मिल सके और लोगों की सेहत ठीक रहे.
कुलपति प्रो. एचएस सिंह ने कहा कि यदि हमें साल 2047 तक विकसित भारत का निर्माण करना है, तो हम सभी लोगों को आगे आना होगा और मिल कर नए विकसित भारत का निर्माण करना होगा.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केके सिंह ने कहा कि अब सुरक्षित पौष्टिक व किफायती उत्पादन और खाद्यान्न उपलब्ध कराने के साथ खेती को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से लाभदायक बनाने के लिए टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना होगा. इस के लिए डिजिटल कृषि की बढ़ती उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए इस का समावेश करना होगा.
उन्होंने आगे यह भी कहा कि डिजिटल खेती एक क्रांति है, जिस में मशीन जीपीएस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों की मदद से भविष्य में खेती को बढ़ावा मिल सकेगा.
आलू अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम के विभागाध्यक्ष प्रो. आरके सिंह ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि आज उत्पादन बढ़ाने के अलावा मृदा के स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना होगा.
उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन कृषि टिकाऊ कृषि प्रणाली थी, जिसमें हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते थे. हमें इस पर भी ध्यान देना होगा और खाद्यान्न सुरक्षा के साथसाथ पोषण पर भी ध्यान देना होगा.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एडीजी इंजीनियरिंग डा. केपी सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि भारत में जल का 700 क्यूबिक फ्रेश वाटर प्रयोग किया जाता है, जबकि अन्य देशों में इस की मात्रा बहुत कम है. भारत में वाटर की रीसाइकलिंग नहीं हो पा रही है. आज जरूरत इस बात की है कि हम वाटर की रीसाइकलिंग करें. अपनी खेती में कम से कम रासायनिक का प्रयोग करें. ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐसी तकनीक का इस्तेमाल खेती में आने वाले दिनों में किया जाने लगेगा. भारत द्वारा रोबोट विकसित किए जा रहे हैं, जिस से आसानी से पेड़ों से फलों की तुड़ाई और खेत में निराईगुड़ाई की जा सके.
नाबार्ड, डीडीएम देवेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि नाबार्ड द्वारा स्मार्ट फार्मिंग, डिजिटल फार्मिंग और विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण और कृषि में किसानों की आय कैसे बढ़ सके, इस के लिए सहयोग किया जा रहा है. गांव में खेती के विकास और किसान की खुशहाली के लिए नाबार्ड सरकार की योजनाओं को पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है.
समापन समारोह में छात्रछात्राओं को उन के लोक और पोस्टर प्रेजेंटेशन के लिए सम्मानित किया गया. इस दौरान प्रो. अवनी सिंह, प्रो. आरएस सेंगर, प्रो. एचएल सिंह, प्रो. गजे सिंह, प्रो. कमल खिलाड़ी, प्रो. डीके सिंह, प्रो. एलबी सिंह, प्रो. विनीता, डा. देश दीपक, डा. शैलजा कटोच, डा. आभा द्विवेदी, डा. उमेश सिंह, प्रो. बृजेश सिंह, प्रो. विजेंद सिंह, प्रो. बीआर सिंह, प्रो. सुनील मलिक, प्रो. दान सिंह, आकांक्षा, रजनी आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा.
प्रो. डीबी सिंह ने बताया कि इस कार्यक्रम में 370 से अधिक शिक्षकों, वैज्ञानिकों और छात्रछात्राओं ने हिस्सा किया और उन के द्वारा किए गए शोध कार्यों को प्रस्तुत किया.