उदयपुर : देश के सुदूर गांवोंकसबों में बसे लोगों तक विभिन्न विषयों की जानकारी मुहैया कराने का रेडियोटैलीविजन एक सशक्त माध्यम है. ‘कृषि में संकट और तनाव’ विषयक कार्यक्रमों की अवधारणा और डिजाइन तैयार करने और प्रसारण के लिए एकदिवसीय कार्यशाला पिछले दिनों 27 फरवरी को हुई. कार्यशाला में 12 राज्यों के आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत 30 अधिकारियों ने हिस्सा लिया.
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि कृषि क्षेत्र लंबे समय से भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा है, जो राष्ट्रीय आय और रोजगार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. भारतीय कृषि की यात्रा 1950 में मात्र 50 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन के साथ शुरू हुई, तब से हम ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
साल 2023-24 के दौरान 137.8 मिलियन टन चावल और 113.3 मिलियन टन गेहूं का रिकौर्डतोड़ उत्पादन किया. इस से निकट भविष्य में हमारी खाद्य सुरक्षा तो मजबूत हुई, लेकिन बढ़ती हुई आबादी के मद्देनजर प्राकृतिक संसाधनों की कमी और जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि के विकास को बनाए रखना होगा.
उन्होंने आगे कहा कि पिछले कुछ दशकों में विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों ने अर्थव्यवस्था की वृद्धि में तेजी से योगदान दिया है, जबकि कृषि क्षेत्र का योगदान कम हुआ है. भारत में अभूतपूर्व कृषि संकट काफी समय से किसानों को प्रभावित कर रहा है. इन के पीछे के कारणों पर विचार करना होगा.
हाल के वर्षों में चरम जलवायु घटनाओं के साथसाथ बाजार और मूल्य में उतारचढ़ाव के चलते किसानों को कई बार आत्महत्या तक के लिए मजबूर होना पड़ा है. सच तो यह है कि हम कहीं न कहीं अपने किसानों के आर्थिक सशक्तीकरण और कल्याण के एजेंडा से चूक गए हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि कृषि बाजार, कोल्ड स्टोरेज, गोदाम और कृषि प्रसंस्करण सहित कृषि बुनियादी ढांचे का विकास कृषि उत्पादन में वृद्धि के अनुरूप गति से नहीं हुआ है. भारत में कृषि संकट को कम करने के लिए किसानों की आय बढ़ाने के लिए नीतियां बनानी होंगी. रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे. डिजिटल कृषि मिशन, सतत कृषि मिशन, प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन, बीज और रोपण सामग्री पर उपमिशन की आवश्यकता है.
डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि आकाशवाणी और दूरदर्शन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के अग्रदूत हैं. इन में ग्रामीण लोगों की मानसिकता को ऊपर उठाने की क्षमता है. डीडी किसान दूरदर्शन का प्रमुख चैनल है.
प्रसार भारती की अतिरिक्त महानिदेशक अनुराधा अग्रवाल ने कहा कि पर्याप्त प्रचारप्रसार की कमी में किसान सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं. प्रसार भारती व इस से जुड़े अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि ऐसी योजनाओं को उन लोगों तक पहुंचाए. कृषि संबंधी प्रसारण से युवा व महिलाओं का ज्ञानवर्द्धन होगा और वे कृषि से जुड़ेंगे. हर क्षेत्र की जलवायु अलगअलग है. वहां के इको सिस्टम को समझ कर कार्यक्रम तैयार करें, ताकि योजनाओं का समग्र लाभ उन्हें मिल सके. उन्होंने कहा कि किसान खुश नहीं है. परेशान हो कर वह अन्न पैदा कर रहा है, जो कभी भी किसी के अंग नही लगेगा.
अटारी, जोधपुर के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने कहा कि देश में वर्तमान में 731 कृषि विज्ञान केंद्र कार्यरत हैं. रेडियो व दूरदर्शन पर भी किसान हित के अनेकों कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, लेकिन किसान किनकिन समस्याओं का सामना कर रहा है, इस का खयाल किसी को नहीं है. कम जोत के कारण किसान बेबस है. आज वह उत्पादन, कीमतों, आय और रोजगार के चक्रव्यूह में फंस कर रह गया है.
एनएबीएम, नई दिल्ली के पाठ्यक्रम निदेशक डा. उमाशंकर सिंह ने कहा कि आकाशवाणी व दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम तार्किक हों, शोधपरक हों, ताकि जो ज्ञान किसानों तक पहुंचे, उस का पूर्ण लाभ मिल सके. जिला स्तर पर तैनात कृषि विभाग के अधिकारियों को भी अपडेट करना होगा, ताकि नवीनतम तकनीकयुक्त ज्ञान का प्रसारण हो.
इस कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिकारी परिषद के सदस्य डा. अरविंद वर्मा, डा. आरबी दुबे, डा. सुनील जोशी, डा. वी. नेपालिया, डा. एसके इंटोदिया एवं डा. राजीव बैराठी मौजूद रहे.