सबौर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के सम्मेलन कक्ष में संगरिया, पंजाब के संत लौंगोवाल विश्वविद्यालय के डीन डा. कमलेश प्रसाद और लुधियाना स्थित एग्रो-इंडस्ट्रियलिस्ट गगन मेहता एवं खाद्य प्रसंसकरण पोस्ट हारवेस्ट के वैज्ञानिकों के साथ एक बैठक आयोजित की गई. बैठक के प्रारंभ में डा. अनिल कुमार सिंह, निदेशक अनुसंधान ने परिचर्चा में उपस्थित सभी सदस्यों का स्वागत किया.

निदेशक अनुसंधान डा. अनिल कुमार सिंह ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में खाद्य प्रौद्योगिकी और फसल के बाद की तकनीक की वर्तमान स्थिति प्रस्तुत की. उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में कृषि उत्पादों का जीडीपी योगदान 0.80 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत जीडीपी योगदान से अधिक है.

उन्होंने कहा कि बिहार ही केवल ऐसा राज्य है, जिस ने कृषि और संबंधित क्षेत्र में विकास को प्रोत्साहित करने के लिए ‘चौथा कृषि रोडमैप’ तैयार किया है. खाद्य प्रसंस्करण यानी फूड प्रोसैसिंग और फसल के बाद की तकनीक राजस्व सृजन के लिए एक प्रमुख बाजार उन्मुख शाखा है.

बिहार में मूल्य संवर्धन की अपार संभावनाएं हैं. बिहार में 8 उत्पादों को भौगोलिक संकेत टैग (GI Tag) मिला है, जिन में से 5 कृषि उत्पादों को बीएयू, सबौर के वैज्ञानिकों की सहायता से भौगोलिक संकेत प्राप्त हुए हैं. चूंकि कई बागबानी और कृषि उत्पाद स्वाभाविक रूप से नष्ट हो जाते हैं, ऐसे में इन से मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने की आवश्यकता है.

डा. शमशेर अहमद, सहायक प्रोफैसर और खाद्य विकास केंद्र के नोडल अधिकारी ने एफडीसी, बीएयू, सबौर के अंतर्गत विकसित प्रयोगशालाओं, प्रशिक्षण केंद्रों और प्रसंस्करण इकाइयों की जानकारी दी.

बीएयू, सबौर के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में काहलगांव में एक कोल्ड स्टोरेज सुविधा स्थापित की गई है. विभाग के अन्य वैज्ञानिकों ने विशेषज्ञों से आगे की सुझाव प्राप्त करने के लिए अपने प्रस्तावित अनुसंधान कार्य प्रस्तुत किए.

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