उदयपुर : 6 फरवरी, 2025 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत फसल विविधीकरण परियोजना के तहत “सतत कृषि की क्षमता को बढ़ाने हेतु उन्नत फसल विविधीकरण रणनीतियों” पर दो दिवसीय विस्तार अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत हुई.

कार्यक्रम में कृषि अधिकारियों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने सतत कृषि और फसल विविधीकरण के नवीन दृष्टिकोणों पर विचारविमर्श किया जाएगा. यह प्रशिक्षण कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण और खाद्य सुरक्षा जैसी बढ़ती चुनौतियों का समाधान करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया है. इस का मुख्य उद्देश्य अधिकारियों को उन्नत ज्ञान और रणनीतियों से सुसज्जित करना है, ताकि वे फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर कृषि उत्पादकता बढ़ाने और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने में योगदान कर सकें.

कार्यक्रम में डा.अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान ने प्रशिक्षण के उद्देश्यों की जानकारी दी. उन्होंने विविधीकृत फसल प्रणालियों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया, जिस से मृदा स्वास्थ्य में सुधार होगा, एकल फसल पर निर्भरता कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि होगी. साथ ही, उन्होंने फसल विविधीकरण में खरपतवार प्रबंधन की उन्नत तकनीकों पर भी विस्तार से चर्चा करी.

इस कार्यक्रम में परियोजना प्रभारी डा. हरि सिंह ने सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने में फसल विविधीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने पारंपरिक कृषि ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के समावेश से कृषि प्रणालियों को अधिक सक्षम और लचीला बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

डा. एचएल बैरवा, ने पर्यावरण अनुकूल और लाभकारी विविधीकृत उद्यानिकी में फसल विविधीकरण पर चर्चा करी. डा. एचएल बैरवा ने किसानों को विभिन्न फसलों को उद्यानिकी फसलों के साथ एकीकृत करने के आर्थिक और पारिस्थितिक लाभों के बारे में बताया. उन्होंने फलोत्पादन के 10 आयाम बताए जिस से किसानों की आय व रोजगार में वृद्धि हो सके.

फसल विविधीकरण (Crop Diversification)

डा. लतिका व्यास, ने फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने में कृषि विज्ञान केंद्रों की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करी. उन्होंने अधिकारियों को उन्नत कृषि तकनीकों के प्रभावी स्थानांतरण की विभिन्न विधियों का प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया, जिस से वे किसानों को नवाचारों और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें.

कार्यक्रम में उपस्थित मृदा वैज्ञानिक डा. सुभाष मीणा, ने कहा कि लगातार एक ही फसल उगाने से मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिस से उत्पादकता प्रभावित होती है. साथ ही, उन्होंने फसल चक्र, मिश्रित फसल प्रणाली और जैविक खादों के उपयोग पर भी जोर दिया.

इस दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएगें, जिन में विस्तार अधिकारियों को जलवायु अनुकूलन,  मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, समेकित कृषि प्रणाली, नीतिगत ढांचे और सरकारी पहल व्याख्यान व व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाएगा.

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