भागलपुर : 27वीं शोध परिषद की बैठक 19-20 जून 2024 का उद्घाटन 19 जून, 2024 को बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के मुख्य प्रेक्षागृह में कुलपति डा. डीआर सिंह ने किया. शोध परिषद की बैठक हर साल 2 बार की जाती है – खरीफ और रबी मौसम की शुरुआत में.

इस बैठक में विश्वविद्यालय में चल रही विभिन्न परियोजनाओं की प्रगति पर चर्चा होती है, किसानों की समस्याओं के निराकरण के लिए नई परियोजनाओं का प्रारूप तय होता है और नएनए प्रभेदों और विकसित तकनीकों को किसानों के लिए रिलीज भी किया जाता है.

ये सारे कार्य मुख्य रूप से कुलपति के दिशानिर्देश में निदेशक शोध के कुशल संचालन में होता है. इस बैठक में निदेशक शोध, डा. अनिल कुमार सिंह ने विश्वविद्यालय में चल रहे शोध कार्यों के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में कुल 390 परियोजनाएं चल रही हैं, जिन में 270 पूरी हो चुकी हैं और इस वर्ष खरीफ में कुल 210 नए प्रोजैक्ट की स्वीकृति मिलने वाली है.

उन्होंने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय के कुशल निर्देशन के परिणामस्वरूप कतरनी धान एवं लीची उत्पादकों को राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत भी किया गया है. शोध निदेशालय किसानों के हित में निरंतर काम कर रहा है और उसी का परिणाम है कि विश्वविद्यालय के 13 वर्ष की अल्पायु में 13 पेटेंट सहित 5 उत्पादों को जीआई प्रमाणपत्र मिले हैं, 69 तकनीकों को रिलीज किया गया है और मक्का, आम, बैगन, लहसुन के प्रभेद भी रिलीज किए गए.

डा. आरएस सिंह ने अपने उद्बोधन में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, टाल एवं दियारा क्षेत्रों के विकास पर बल दिया और विश्वविद्यालय के द्वारा उन क्षेत्रों में चल रहे कामों की प्रशंसा की.

डा. सीपी सचान ने सुझाव दिया कि पारंपरिक तकनीकी को साथ में ले कर ही नई तकनीकों का विकास करें और नए प्रभेदों को बढ़ाएं. इस काम में सभी विभागों का सामंजस्य एवं सहयोग होना आवश्यक है.

उन्होंने सीड रिप्लेसमेंट को बढ़ावा देने और कम पानी वाली फसलों को फसल विविधीकरण में शामिल करने की सलाह दी और ऐसी तकनीक को विकसित करने पर जोर दिया, जो किसानों के क्रयशक्ति की सीमा में हो और टिकाऊ उत्पादन के लिए अच्छा भी.

अपने उद्बोधन में कुलपति डा. डीआर सिंह मौसम बदलाव को ध्यान में रख कर प्रभेदों और तकनीकों का विकसित करने की सलाह दी. उन्होंने खरीफ मक्का उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तकनीकों को विकसित करने का सुझाव भी दिया.

कुलपति ने पारंपरिक फसलों और पारंपरिक तकनीकी अनुभवों के संरक्षण पर भी बल दिया.

अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि उसी बीज का उत्पादन करें, जो किसानों की मांग हो. जल संसाधन के लिए फर्टीगेशन तकनीक का प्रत्यक्षण बड़े क्षेत्रफल में कराने, पारंपरिक पौधों एवं औषधीय पौधों से कीटनाशी, रोगनाशक दवा बनाने और अंतःवर्ती फसलों को बढ़ावा देने की भी सलाह दी गई.

उन्होंने एमएससी एवं पीएचडी के छात्रों को अपने समय का 10 फीसदी हिस्सा प्रयोगशाला में बिताने का निर्देश भी दिया. अपने अभिभाषण के अंत में उन्होंने सभी नए वैज्ञानिकों को प्रोजैक्ट लीडर/इन्वेस्टिगेटर बन कर अपने वरीय वैज्ञानिक को साथ ले कर काम करने की सलाह दी.

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