उदयपुर : 27 अगस्त. खाद्यान्न क्षेत्र में लगातार शोध और अनुसंधान का ही नतीजा है कि आज हमारा देश आत्मनिर्भर है, वरना एक समय था, जब देशवासी बाहर से आयातित लाल गेहूं का बेसब्री इंतजार करते थे। कृषि वैज्ञानिकों ने दिनरात मेहनत की और इस वर्ष भारत में गेहूं का रिकौर्ड 112 मिलियन टन उत्पादन हुआ है.
यह बात महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कही.
उन्होंने कहा कि अब चुनौती इस बात की है कि बदलते मौसम चक्र में गेहूं उत्पादन को बरकरार रखना, क्योंकि गेहूं में दाना बनते समय अचानक तापमान बढ़ने से न केवल दाना सिकुड़ जाता है, बल्कि उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. साथ ही, देशदुनिया के वैज्ञानिक अब इस दिशा में जुटे हैं कि अब कम अवधि मेें पकने वाली गेहूं और जौ की किस्में तैयार हो. गेहूं में मौजूद ग्लूटेन के साथसाथ आयरन व जिंक जैसे प्रोटीन की उपलब्धता भरपूर हो. साथ ही, गेहूं एक संपूर्ण आहार के रूप में प्रचलित हो सके.
उन्होंने कहा कि गेहूं एक ऐसा खाद्यान्न है, जिसे संपूर्ण भारत वर्ष में कहीं भी आसानी से उगाया जा सकता है. बदलते मौसम चक्र में गेहूं की किस्में डीबी डब्ल्यू – 327, 303 व 187 काफी कारगर है.
राजस्थान के लिए राज- 4037, राज- 4079 और राज- 4238 किस्में काफी उपयुक्त हैं. इस के अलावा जौ उत्पादन में भी कृषि वैज्ञानिकों ने सार्थक परिणाम दिए हैं, क्योंकि एल्कोहाल इंडस्ट्री में इस की काफी मांग रहती है और किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल जाता है.
कार्यशाला के आयोजन सचिव डा. रतन तिवारी, गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा ने बताया कि कार्यशाला में नई किस्मों के अनुमोदन, प्रचलित किस्मों के उत्पादन बढ़ाने, बीज प्रजनन एवं आने वाली चुनौतियों के समाधान पर चर्चा एवं रणनीति तैयार की जाएगी.
डा. एसके शर्मा, सहायक महानिदेशक,आईसीएआर ने बताया कि यह परियोजना देश के कृषि क्षेत्र में सब से बड़ी परियोजना है. आज वैज्ञानिकों को बायोफोर्टीफाइड गेहूं उत्पादन, ग्लोबल वार्मिंग की दिशा में कम पानी और अधिक तापमान सहन करने योग्य किस्मों के विकास की जरूरत है.
एमपीयूएटी के अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा ने कार्यशाला के दौरान विभिन्न सत्रों मेें होने वाली गतिविधियों की जानकारी दी.