भरतपुर : देश के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि उत्पादन की वृद्धि के लिए अपनाई जा रही तकनीक व कृषि क्रियाओं पर काम कर रही विभिन्न संस्थानों के अनुभवों को साझा कर समावेशी जिला विकास मौडल बनाने की दृष्टि से भरतपुर में ‘समृद्ध भारत अभियान’ संस्था की पहल पर दोदिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ.
इस आयोजन में विषय विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, चिंतक व विचारकों ने भाग लिया. कार्यशाला में विभिन्न संस्थाओं के कार्यों एवं कृषि उत्पादन वृद्धि और रसायनमुक्त खेती के संबंध में आए सुझावों को नीति आयोग को भेजा जाएगा, ताकि नीति आयोग ग्रामीण विकास अथवा आकांक्षी जिला कार्यक्रम में इन सुझावों को शामिल कर सके, ताकि किसानों की आमदनी बढ़ सके.
‘समृद्ध भारत अभियान’ के निदेशक सीताराम गुप्ता ने बताया कि कार्यशाला में ‘राष्ट्रीय रबड़ बोर्ड’ के चेयरमैन डा. सांवर धनानिया, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी नरेंद्र सिंह परमार, वेद प्रकाश, ग्वालियर के संत स्वामी ऋषभ देवानंद, कनेरी मठ (महाराष्ट्र) के कृषि विशेषज्ञ डा. रविंद्र सिंह, ‘सर्वोदय फाउंडेशन’ की अंशु गुप्ता, ‘जीवजंतु कल्याण बोर्ड’ के सदस्य जब्बर सिंह, नोएडा, उत्तर प्रदेश के सत्येंद्र सिंह, विमल पटेल, पना (भरतपुर) के कमल सिंह, इंदौर की रीना भारतीय, जालौर (राजस्थान) के ईश्वर सिंह, ग्वालियर के डा. अंकित अग्रवाल, संजीव गोयल, आगरा के मो. हबीब, इंदौर की ध्वनि रामा, कांकरोली (राजसमंद) के विनीत सनाढ्य आदि ने कृषि एवं गोपालन के क्षेत्र में किए जा रहे अनुभवों की जानकारी दी.
कार्यशाला में सभी वक्ताओं ने सुझाव दिया कि रसायनमुक्त एवं कीटनाशकमुक्त खेती करने के लिए हमें प्राचीन परंपरागत खेती अर्थात प्राकृतिक व जैविक खेती शुरू करनी होगी. साथ ही, खेती के साथ गोपालन के काम को भी प्रोत्साहित करना होगा.
सभी वक्ताओं ने बताया कि रसायन एवं कीटनाशक दवाओं के उपयोग के चलते कृषि उत्पाद इतने जहरीले हो गए हैं कि इन से आज कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी सामने आ रही है. सभी वक्ताओं ने एक मत से सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को प्राकृतिक खेती अथवा जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सभी ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर प्रशिक्षण शिविर व प्रदर्शन आयोजित किए जाएं.
सभी विशेषज्ञों का कहना था कि जैविक खेती की शुरुआत में कृषि उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, किंतु मानव शरीर पर रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों के कारण पैदा होने वाली बीमारियों से जरूर नजात मिल जाएगी.
सभी वक्ताओं ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकारों को जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण की जटिल प्रक्रिया को आसान बनाना होगा और प्राकृतिक अथवा जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष अनुदानित योजना लागू करनी होगी.