नई दिल्ली : पानी के घटते संसाधनों और बढ़ती आबादी व उस से जुड़ी खाद्य मांग के परिप्रेक्ष्य में जल संग्रहण, जल उपयोग दक्षता और जल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए गहन प्रयासों की आवश्यकता है. सिंचाई क्षेत्र को उद्योग और ऊर्जा क्षेत्रों से पानी की मांग के मामले में गंभीर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए समेकित जल मांग प्रबंधन (Water Demand Management) समय की जरूरत है. इस के लिए अनुसंधान संगठनों और गैरसरकारी संगठनों के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है, जो कृषि में पानी के कुशल उपयोग के लिए समुदाय को संगठित कर के जमीनी लैवल पर काम कर रहे हैं.

इस संदर्भ में जमीनी लैवल पर जल उपयोगकर्ता संघ अपने समुदाय व नेतृत्व वाले जल संरक्षण मौडलों के माध्यम से जल मांग प्रबंधन (Water Demand Management) का लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. वास्तव में बढ़ती पानी की मांग को पूरा करने के लिए पारंपरिक प्रथाओं और अनुकूलन कौशल की जानकारी जरूरी है.

जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और धान फाउंडेशन द्वारा किए गए कई हस्तक्षेपों ने प्रभाव का एक व्यापक दायरा देखा है, जिस में उच्च जल आवश्यकता वाली फसलों से कम जल आवश्यकता वाली फसलों की ओर बदलाव, उन्नत फसल पद्धतियां, जिस से पानी की मांग कम हो गई, खेत पर पानी बचत उपायों से मिट्टी में नमी का लैवल बेहतर हुआ आदि.

इसी पृष्ठभूमि में "सामुदायिक नेतृत्व वाले जल संरक्षण मौडलों के माध्यम से टैंक आधारित कृषि को बनाए रखना" विषय पर एक संयुक्त कार्यशाला का आयोजन 19 सितंबर, 2024 को जल प्रौद्योगिकी केंद्र के सभाभवन में भाकृअप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और धान फाउंडेशन, तमिलनाडु द्वारा किया गया. कार्यशाला के मुख्य उद्देश्य हैं :

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