नई दिल्लीः केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने नई दिल्ली में दूसरी राष्ट्रस्तरीय हितधारक कार्यशाला का सफलतापूर्वक आयोजन किया. कार्यशाला की अध्यक्षता केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (एमओईएफ और सीसी) अश्विनी चैबे ने की और एमओईएफ और सीसी सचिव लीना नंदन, एमओएफएएचडी सचिव अलका उपाध्याय, डीजीएफ और एसएसएमओईएफ और सीसी सीपी गोयल, वन्यजीव एडीजी बिवास रंजन ने सहायता प्रदान की, जिन का उद्देश्य नेशनल रेफरल सैंटर फौर वाइल्डलाइफ (एनआरसी-डब्ल्यू) के विकास को आगे बढ़ाना और वन हेल्थ पहल के लिए सहयोग को बढ़ावा देना है.
इस कार्यक्रम में मानव स्वास्थ्य, पशुधन स्वास्थ्य, वन्यजीव अनुसंधान संस्थानों, राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधकों, चिड़ियाघर निदेशकों आदि के विभिन्न संगठनों के विशेषज्ञों का जमावड़ा देखा गया. सीसीएमबी, आईसीएआर-निवेदी, डब्ल्यूआईआई, एनटीसीए, आईवीआरआई जैसे संस्थानों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
मंत्री अश्विनी कुमार चैबे ने समृद्ध वन्यजीव और जैव विविधता के संबंध में भारत की अद्वितीय स्थिति और हाथियों की श्रेणी में नंबर वन और एशियाई शेर के विशेष घर के रूप में हमारे देश की अद्वितीय स्थिति पर प्रकाश डाला और वन्यजीव स्वास्थ्य और रोग प्रबंधन के लिए समग्र दृष्टिकोण के महत्व पर जोर दिया.
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि मंत्रालय हमेशा इस तरह की पहल का समर्थन करता रहेगा. इसी तरह प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (पीएम-एसटीआईएसी) के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पहल का सक्रिय रूप से समर्थन कर के वन हेल्थ मिशन के लिए समर्थन भी जारी रहेगा. साथ ही, उन्होंने मनुष्यों, पशुधन और वन्यजीवों को शामिल करते हुए एकीकृत निगरानी की आवश्यकता को रेखांकित किया.
इस के अलावा आकर्षक सत्रों में एनआरसी-डब्ल्यू का विकास, वन्यजीव क्षेत्र में रोग एवं निगरानी की आवश्यकताएं, मानव और पशुधन कार्यक्रमों के साथ जुड़ाव, वन्यजीव क्षेत्र के लिए अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकताएं और एक प्रभावी क्षमता निर्माण ढांचे की आवश्यकता जैसे विषयों को शामिल किया गया.
कार्यशाला एनआरसी-डब्ल्यू के विकास को मजबूत करने के उद्देश्य से हितधारकों के बीच समृद्ध चर्चाओं और सहयोगात्मक रणनीतियों के साथ संपन्न हुई. हितधारकों ने एनआरसी-डब्ल्यू की प्रभावी स्थापना के लिए महत्वपूर्ण नवीन रूपरेखाओं, तकनीकी हस्तक्षेपों और संसाधन जुटाने पर विचारविमर्श किया.
कार्यशाला के मुख्य आकर्षण में प्रभावी वन्यजीव स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए मनुष्यों, पशुधन और वन्यजीवों को एकीकृत करने वाले समग्र दृष्टिकोण पर जोर देना शामिल है. हितधारक संगठनों के विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा एनआरसी-डब्ल्यू के विकास, वन्यजीव क्षेत्र में रोग व निगरानी आवश्यकताओं और मानव और पशुधन कार्यक्रमों के साथ जुड़ाव, वन्यजीव क्षेत्र के लिए अनुसंधान एवं विकास आवश्यकताओं और एक प्रभावी क्षमता निर्माण ढांचे की आवश्यकता जैसे विभिन्न विषयों को शामिल करते हुए आकर्षक सत्र आयोजित किए गए.
हितधारकों ने अपनी प्रतिबद्धता में एकजुट हो कर एनआरसी-डब्ल्यू की प्रभावी स्थापना के लिए महत्वपूर्ण नवीन रूपरेखाओं, तकनीकी हस्तक्षेपों और संसाधन जुटाने पर विचारविमर्श किया.
कार्यशाला का समापन एक साझा दृष्टिकोण के साथ प्रतिध्वनित हुआ, जिस ने हितधारकों को जैव विविधता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लाभ के लिए इस महत्वपूर्ण पहल को आगे बढ़ाने में अपने ठोस प्रयासों को जारी रखने के लिए प्रेरित किया.
कार्यशाला में वन्यजीवों के लिए प्रस्तावित राष्ट्रीय रेफरल केंद्र के लिए विचारविमर्श किए गए फोकस क्षेत्रों पर जानकारी प्रदान की गई, जिस में शामिल हैं –
– उभरते संक्रामक रोगों के परिप्रेक्ष्य से रोग व प्रजाति आधारित अनुसंधान
– राष्ट्रीय वन्यजीव रोग निगरानी कार्यक्रम
– आपातकालीन स्थितियों में वन्यजीव रोगों की रोकथाम और प्रबंधन
– कौशल आधारित प्रशिक्षण और वन्यजीव पेशेवरों का निरंतर क्षमता निर्माण
– कमांड कंट्रोल डेटा एवं सूचना प्रबंधन (एनालिटिक्स)
– वन्यजीव स्वास्थ्य नीति को आकार देना
इस के अलावा कार्यशाला ने पशुधन रोग निगरानी प्रणाली का एक सिंहावलोकन भी प्रदान किया, जिससे क्षेत्रों के बीच मजबूत सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान का मार्ग प्रशस्त हुआ.