हरियाणा राज्य की तकरीबन 6.2 लाख हेक्टेयर जमीन के पानी में खारापन है. इस जमीन का बेहतर इस्तेमाल सफेद झींगापालन के लिए किया जा सकता है. झींगापालन खारेपन से ग्रस्त जमीन के इस्तेमाल के साथसाथ अच्छी आमदनी का जरीया भी है. यदि वैज्ञानिक तरीके से इस का पालन किया जाए, तो आज का नौजवान इस से खासी आमदनी हासिल कर सकता है.

सफेद झींगा क्या है?

झींगापालन (Shrimp Farming)

मूलरूप से यह मेक्सिकन प्रजाति है, जो प्रशांत महासागर में मेक्सिको से पेरू तक पाई जाती है. भारत सरकार व कृषि मंत्रालय के तहत मत्स्य विभाग की कोशिशों से साल 2009 से भारत में इस का पालन किया जा रहा है.

झींगा का रंग धुंधला सफेद होता है, पर मौसम के हिसाब से यह अपना रंग बदल सकता है. इस के वयस्क की लंबाई तकरीबन 23 सेंटीमीटर होती है. मादा झींगा नर से ज्यादा तेजी से बढ़ोतरी करती है.

क्यों करें सफेद झींगापालन?

यह झींगा तेजी से बढ़ता है और 100 से 120 दिनों में ही 1 झींगे का वजन 20-25 ग्राम तक हो जाता है. इस का पालन 0.5 पीपीटी से 45 पीपीटी तक के खारेपन में किया जा सकता है. 23-30 डिगरी सेल्सियस तापमान पर यह अच्छी बढ़ोतरी करता है और 15-33 डिगरी सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकता है. इसलिए हरियाणा में यह तकरीबन 9 महीने तक बढ़ोतरी कर सकता है. इस की खुराक में प्रोटीन की जरूरत कम होती है और इस में 35 फीसदी प्रोटीन, 19 फीसदी वसा और 3 फीसदी कार्बोहाइडे्रट्स के साथसाथ तमाम मिनरल्स भी होते हैं. यह प्रोटीन सभी जरूरी अमीनो एसिडो से भरपूर होता है. इस की पैदावार 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सालाना या 40 क्विंटल प्रति एकड़ सालाना तक होती है.

इस का पालन कैसे करें?

झींगापालन के लिए सब से पहले सही जगह को चुनना बहुत ही जरूरी है. खासतौर से जो जमीन लवणीय है और उस का पानी भी लवणीय है, उस में सफेद झींगे को पाला जा सकता है. इस के लिए मिट्टी व पानी की जांच मत्स्य विभाग से कराना जरूरी है.

इसे पालने में बहुत ही सावधानी रखनी पड़ती है. सफेद झींगापालन की ट्रेनिंग मत्स्य पालन विभाग, हरियाणा व सीआईएफई, लाहली/बनियानी (रोहतक) के संस्थानों में दी जाती है. ट्रेनिंग ले कर आप अपना काम शुरू कर सकते हैं.

झींगापालन (Shrimp Farming)

ध्यान रखने वाली बातें : तकनीक जानकारी हासिल करने व झींगापालन की जगह का चुनाव करने के बाद निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

* इस का बीज व खुराक भारत के तटीय प्रदेशों जैसे आंध्र प्रदेश वगैरह से हासिल किया जा सकता है.

* तालाब के पानी में आक्सीजन की कमी न हो, इस के लिए जलवाहक यानी ऐरिटर लगाने चाहिए.

* तालाब में बीज का संचय 60 प्रति वर्गमीटर के घनत्व के हिसाब से किया जाना चाहिए.

* झींगे का परिपूरक आहार इस के वजन के अनुपात में डाला जाना चाहिए. ज्यादा या कम आहार इस की बढ़ोतरी पर बुरा असर डालता है.

* तालाब के पानी में विभिन्न प्रकार के मापदंड जैसे पीएच, खारापन,सीओ2, ओ2, नाइट्राइट, नाइट्रेट, फास्फेट, सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, क्षारीयता वगैरह की जांच की जरूरत लगातार पड़ती है.

उपज व मार्केटिंग

* 100 से 120 दिनों में झींगा तैयार हो जाता है. इस का वजन 20 से 25 ग्राम का होता है.

* झींगे को जाल द्वारा पानी से निकाला जाता है.

* इस की पैकिंग पिसी हुई बर्फ के साथ हवाबंद डब्बों में की जाती है. बाद में डब्बों को मंडी तक बेचने के लिए पहुंचाया जाता है.

अधिक जानकारी के लिए आप अपने जिले के जिला मत्स्य अधिकारी से संपर्क करें.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...