बिहार के समस्तीपुर जिले के पूसा प्रखंड में एक छोटा सा बाजार है, जिस का नाम है मोरसंड. यहां सड़क के किनारे सुबहसवेरे 7 बजे से ही सब्जियों की मंडी सजने लगती है. इस स्थानीय मंडी में आने वाली सब्जियां इतनी ताजी, खूबसूरत और अच्छी होती हैं कि अगर आप का मन न भी हो, तब भी आप सब्जी खरीदने को मजबूर हो जाएंगे.
लेकिन मोरसंड गांव में लगने वाली इस सब्जी मंडी का संचालन बाकी मंडियों की तर्ज पर बिहार सरकार नहीं करती है, बल्कि इस सब्जी मंडी को किसान बिचौलियों से बचने के लिए खुद ही संचालित करते हैं.
किसानों द्वारा संचालित मंडी सरकार द्वारा संचालित शहर की मुख्य मंडी से काफी दूरी पर मौजूद है. उस के बावजूद भी ग्राहक सरकारी मंडी में न जा कर मीलों का फासला तय कर किसानों द्वारा संचालित इस मंडी में खरीदारी करने आते हैं, जहां किसानों को उन के गांव के बगल में ही सब्जियों की उपज का सरकारी मंडी से अच्छा रेट मिल जाता है. इस से यहां अपनी सब्जी बेचने वालों को न केवल अच्छा मुनाफा मिलता है, बल्कि समय और पैसे की बचत भी होती है.
किसानों को खुद की मंडी चलाने का ऐसे आया विचार
पूसा के मोरसंड कसबे में किसानों द्वारा संचालित इस मंडी को खोलने का काम छोटे और म झोले किसानों की आय बढ़ाने और उन के जीवनस्तर को सुधारने के लिए बिहार में काम कर रही संस्था आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत व एक्सिस बैंक फाउंडेशन द्वारा दिया गया.
जब किसानों ने एकेआरएसपीआई को मंडी में अपनी सब्जियों की उपज का वाजिब रेट न मिलने की बात बताई, तो एकेआरएसपीआई के कार्यकर्ताओं ने उन्हें संगठित कर जनता सब्जी संग्रह सह विक्रय केंद्र, मोरसंड बहादुरपुर नाम से एक किसानों की एक मंडी समिति बनवाने में मदद की.
इस मंडी समिति में सब्जी उत्पादक गांवों के किसानों को पदाधिकारी और सदस्य बनाया गया. इस के बाद किसानों ने मोरसंड कसबे की एक जगह को मंडी के रूप में चुना, जहां इस समिति से जुड़े सभी किसान अपनी सब्जियों को थोक में बेचने के लिए लाने लगे.
शुरुआती दौर में किसानों को ग्राहक कम मिलते थे, लेकिन जब लोगों को यह पता चला कि मोरसंड कसबे में किसानों द्वारा संचालित मंडी में ताजा और अच्छी सब्जियां वाजिब रेट में मिल रही हैं, तो दूरदूर के व्यापारी भी इन किसानों की सब्जियां खरीदने आने लगे.
सरकारी मंडी की जगह किसानों द्वारा खुद की मंडी खोलने के सवाल पर किसानों द्वारा संचालित मोरसंड मंडी के अध्यक्ष राम नंदन सिंह ने बताया कि भारत भले ही कृषि प्रधान देश है, लेकिन यहां सब से बुरी हालत भी किसान की ही है. सरकारें किसानों को तमाम तरह की छूट और राहतें देने की बात करती हैं, लेकिन कृषि उपज के वाजिब रेट को ले कर कोई ठोस सरकारी नीति न होने के चलते किसान हर जगह ठगा जाता रहा है.
उन्होंने बताया कि कभी मौसम किसान पर मुसीबत बन कर टूटता है, तो कभी हालात उस का साथ नहीं देते और सबकुछ ठीक रहने के बावजूद भी जब वह अपनी फसल बेचने मंडी पहुंचता है, तो वहां सही भाव नहीं मिलता. क्योंकि मंडियों में बिचौलियों और मुनाफाखोरों का गठजोड़ उन्हें अपनी उपज औनेपौने दामों में बेचने को मजबूर होना पड़ता है.
ऐसी दशा में हम किसानों द्वारा संचालित इस मंडी पर पूरा नियंत्रण भी किसानों का होता है, जिस से हमें अपनी फसल का रेट तय करने का पूरा अधिकार होता है.
उन्होंने आगे बताया कि 5 किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले मोरसंड व उस से लगे आसपास के गांवों चकहारी, पुनास, सिहिया खुर्द, ठहरा पातेपुर, गोपीनाथ, कैजिया, बेला जैसे दर्जनों गांवों के सैकड़ों किसान इस मंडी से जुड़े हुए हैं, जो अपनी सब्जियों जैसे आलू, गोभी, टमाटर, ब्रोकली, मटर, कद्दू, लौकी, गाजर, मेथी, धनिया, बंदगोभी, नेनुआ, बैगन, सेम, प्याज, लहसुन, परवल, मूली, साग, कुसुम, फर, भिंडी, पालक, खीरा, गेंधरी, हरी मिर्च जैसी फसलें बेचने आते हैं. यहां कुछ ही घंटों में किसानों की सब्जियां आसानी से बिक जाती हैं.
मोरसंड कसबे के किसानों द्वारा संचालित इस मंडी के संरक्षक देवनारायण सिंह ने बताया कि शहर की सरकारी मंडियों में किसान जब सब्जी या फल ले कर पहुंचता था, तो वहां उन की मुलाकात बहुत सारे एजेंट से हो जाती थी, जो उन की सब्जी को बिकवाने का काम करते थे, क्योंकि इन मंडियों में किसान बिचौलियों के बिना कुछ भी खरीदबेच नहीं सकते. वजह, यहां बिचौलिए ही किसानों की फसल की बोली लगाता है और उसे बिकवाता है.
उन्होंने बताया कि कुछ व्यापारी साठगांठ कर किसान की फसल औनेपौने दाम में खरीद लेते हैं. ऐसा छोटे शहरों की मंडियों में होता है, जहां ग्राहक कम आते हैं. और जो ग्राहक आते हैं, वह व्यापारी यानी बिचौलियों से आपस में मिले हुए होते हैं, जो किसान से उस की फसल को कम कीमत में खरीद कर दिल्ली, कानपुर जैसी बड़ी मंडी में पहुंचा कर ऊंचे भाव में बेचने में कामयाब हो जाते हैं.
इस मंडी में कई तरीके से होता है किसानों का फायदा
महिला किसान सविता देवी ने बताया कि सरकारी मंडी की तुलना में किसानों द्वारा संचालित खुद की मंडी में कई तरीके से धन, समय और श्रम की बचत होती है, क्योंकि किसान अपने खेतों में सब्जी की तुड़ाई करने के बाद दूर मंडियों में बेचने जाता है, तो उस में ट्रांसपोर्टेशन का खर्च तो जुड़ता ही है, साथ ही साथ मंडी में जाने के बाद उन्हें मंडी टैक्स, एजेंट का कमीशन, पल्लेदारी की जरूरत पड़ती है. ये सब खर्चे किसान को अपनी जेब से करने होते हैं. जो सब्जियों की बिक्री से हुई आमदनी से ही देना पड़ता है. बाकी जो बचता है, वो किसान को मिलता है.
लेकिन मोरसंड मंडी के सफल संचालन के लिए किसानों की सहमति से महज एक रुपया किलोग्राम मंडी शुल्क लिया जाता है. इस के अलावा सब्जियों की लोडिंग और अनलोडिंग का काम किसान खुद ही आपस में मिल कर करते हैं, जिस से पल्लेदारी पर आने वाला शुल्क पूरी तरह से बच जाता है.
पूसा प्रखंड के लालपुर गांव के किसान राम दयाल ने बताया कि वह बैगन, फूलगोभी, पालक, टमाटर सहित कई तरह की सब्जियों की खेती करते हैं.
उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले तक उन्हें तैयार सब्जियों को बेचने के लिए गांव से तकरीबन 15 से 20 किलोमीटर दूर तक की मंडी में जाना पड़ता था, जिस से उन्हें ट्रांसपोर्टेशन पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता था. दूर मंडियों में आनेजाने में लगने वाले अतरिक्त समय व खर्च में भी कमी आई है.
उन्होंने यह भी बताया कि किसानों की इस मंडी का संचालन पूरी तरह से किसान ही करते हैं और इस पर सरकार का किसी तरह का हस्तक्षेप भी नहीं है.
जनता सब्जी संग्रह सह विक्रय केंद्र, मोरसंड बहादुरपुर में सब्जियों की बिक्री का हिसाबकिताब देखने वाले और इस समिति के कोषाध्यक्ष मंजेश कुमार ने बताया कि कई बार शहर की मंडी में सब्जियां बेचने के बाद आढ़ती किसानों का पैसा बकाया कर देते हैं, जबकि इस मंडी में किसानों की उपज की बिक्री के तुरंत बाद उन्हें भुगतान कर दिया जाता है.
शहर की मंडियों से व्यापारी यहां खरीदने आते हैं सब्जियां
समस्तीपुर जिले में बड़ी सब्जी मंडी होने के बावजूद भी वहां से फुटकर व्यापारी मोरसंड में सब्जियों की खरीदारी करने आते हैं. फुटकर व्यापारी बाबुल कुमार से जब यह पूछा गया कि जब जिले में मंडी है, तो वह इतनी दूर सब्जियों की खरीदारी करने क्यों आते हैं?
उन्होंने कहा कि शहर की मंडी में बहुत ज्यादा भीड़ होती है. इस से बचाव तो होता ही है. साथ ही, यहां लोडिंग चार्ज, मंडी शुल्क, कमीशन एजेंट शुल्क भी नहीं देना पड़ता है. यहां हर समय हरी और ताजी सब्जियां मिलती हैं, जबकि शहर की मंडी में दूर से आने वाली सब्जियां बासी हो जाती हैं.
उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि शहर की मंडी में देरी से पहुंचने पर सब्जियां नहीं मिल पाती हैं, जबकि यहां लेट हो जाने पर भी सब्जी उपलब्ध हो जाती है. और कभीकभी न पहुंच पाने की दशा में किसान द्वारा उन की दुकान तक डिलीवरी भी दे दी जाती है.
आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत) में पूसा के एरिया मैनेजर शांतनु सिद्धार्थ दुबे ने बताया कि एकेआरएसपीआई व एक्सिस बैंक फाउंडेशन के सहयोग से मोरसंड में किसानों द्वारा संचालित सब्जी मंडी पूरे बिहार के लिए मौडल है.
उन्होंने बताया कि इस मंडी के खुल जाने से किसानों की आमदनी में इजाफा हुआ है, जिस से किसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के बाद भी बचत कर लेते हैं.
एकेआरएसपीआई में बिहार प्रदेश के कृषि प्रबंधक डा. बसंत कुमार ने बताया कि मोरसंड सब्जी मंडी की सफलता को देखते हुए इसी तर्ज पर बिहार में और भी कई जगहों पर किसान इस तरह की खुद की मंडी संचालित करने की कवायद कर रहे हैं. अगर ऐसा होता है, तो किसानों की सरकारी सब्जी मंडी पर निर्भरता कम होगी. साथ ही, अपनी उपज की कीमत भी किसान खुद तय कर पाएंगे.
एकेआरएसपीआई में बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय ने बताया कि एकेआरएसपीआई द्वारा एक्सिस बैंक फाउंडेशन के सहयोग से समस्तीपुर में छोटे व म झोले किसानों की आय बढ़ाने के लिए फील्ड लैवल पर कई तरह की तकनीकी, व्यावहारिक और आर्थिक सहायता मुहैया कराई जा रही है, जिस से किसान खेती में जोखिम को कम करने में कामयाब होने के साथ ही आधुनिक तरीकों से लागत को कम कर अपनी आय में इजाफा करने में कामयाब हो रहे हैं.
सब्जी उत्पादन तकनीक प्रशिक्षण का आयोजन
हाल ही में ‘सब्जी उत्पादन तकनीक’ पर कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. केंद्राध्यक्ष प्रो. एसएन सिंह ने बताया कि केंद्रीय बारानी कृषि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद से इस जनपद में जलवायु परिवर्तन आधारित कृषि तकनीकों का प्रदर्शन एवं क्षमता में विकास हेतु परियोजना की शुरुआत की गई है, जिस का उद्देश्य कृषि बागबानी, सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मत्स्यपालन, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खीपालन आदि क्षेत्रों में रणनीतिक अनुसंधान के तहत अनुकूलीय रणनीतियों के निर्माण के साथसाथ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आंकलन प्रमुख है.
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक और मानव निर्मित संसाधनों के निरंतर प्रबंधन के साथ ही साथ कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करने वाली जलवायु अनुकूल कृषि प्रौद्योगिकियों के माध्यम से बेरोजगारों को कृषि आधारित स्वरोजगार से जोड़ कर पारिवारिक आय में वृद्धि करना है. इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए किसानों व बेरोजगार नौजवानों को जायद के मौसम में उत्पादित की जाने वाली सब्जियों जैसे भिंडी, मिर्चा, लौकी, तोरई, लोबिया, धनिया, सहजन आदि की खेती करने का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है. इस से वे अतिरिक्त आय के साथसाथ रोजगार भी पा सकते हैं.
पशुपालन विशेषज्ञ डा. डीके श्रीवास्तव ने अवगत कराया कि जायद के मौसम में सिंचाई की समुचित व्यवस्था होने पर आलू, सरसों, चना, मटर के बाद हरा चारा उत्पादन के लिए लोबिया और बाजरा की खेती करना उपयुक्त है. इस से पशुओं को शुष्क मौसम में भरपूर प्रोटीनयुक्त हरा चारा मिलता रहेगा, जिस से उन की दूध उत्पादन क्षमता प्रभावित नहीं होगी.
लोबिया की प्रमुख किस्में पूसा कोमल, काशी कंचन, नरेंद्र आदि हैं. इस के लिए एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. इसी प्रकार बाजरा की उन्नत किस्म अनन्त है, जिस में 8-10 कटाई कर के चारा प्राप्त कर सकते हैं.
पौध रक्षा वैज्ञानिक डा. प्रेम शंकर ने सब्जियों में लगने वाले प्रमुख रोगों एवं कीड़ों पर चर्चा करते हुए बताया कि सब्जियों में रोगों एवं कीटों से बचाव के लिए नीम तेल 10 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें. नियंत्रित न होने की दशा में सब्जियों को झुलसा रोग से बचाने के लिए मैनकोजेब 64 फीसदी, साइमोक्जिल 8 फीसदी डब्ल्यूपी फफूंदीनाशक मिश्रण का 1.2 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.
प्रसार वैज्ञानिक डा. आरवी सिंह ने जायद में सब्जियों (भिंडी, लोबिया, तोरोई, लौकी, कद्दू, करेला आदि) की खेती की नवीनतम तकनीकों के विषय में किसानों को विस्तृत जानकारी दी. साथ ही, जायद में दलहनी फसल (मूंग, उड़द) की खेती के विषय में भी विस्तृत जानकारी प्रदान की.
उन्होंने यह भी बताया कि जो किसान भाई वसंतकालीन गन्ने की खेती करते हैं, वे गन्ने के साथ लोबिया, भिंडी, करेला एवं धनिया (हरी पत्ती के लिए) की सहफसली खेती से अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं.
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रगतिशील किसान ओमप्रकाश, कमलेश, नरायन आदि ने प्रतिभाग किया. इस अवसर पर केंद्र के वैज्ञानिकों के साथसाथ जेपी शुक्ला, निखिल सिंह, प्रहलाद सिंह, बनारसी व सीताराम आदि कार्मिक भी उपस्थित रहे.