उदयपुर : 4 नवंबर, 2023. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय में संस्थागत विकास कार्यक्रम के अंतर्गत ‘‘प्राकृतिक खेती से स्थायित्व कृषि एवं पारिस्थितिकी संतुलन” पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण का समापन हुआ. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में डा. एसके शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्राकृतिक कृषि की महत्ता को देखते हुए प्राकृतिक खेती पर स्नातक छात्रों के लिए विशेष पाठ्यक्रम पूरे राष्ट्र में आरंभ किया जा रहा है.
उन्होंने आगे कहा कि प्राकृतिक खेती से मृदा स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी संतुलन अच्छा रहेगा, जिस से कृषि में स्थायित्व आएगा. इस के लिए सभी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों, शिक्षकों, विषय विशेषज्ञों एवं विद्यार्थियों के लिए प्रशिक्षण आयोजित किए जा रहे हैं.
उन्होंने यह भी बताया कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का प्राकृतिक खेती में वृहद अनुसंधान कार्य एवं अनुभव होने के कारण यह विशेष दायित्व विश्वविद्यालय को दिया गया है.
विदित है कि राजस्थान कृषि महाविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं आचार्य डा. महेंद्र सिंह पाल ने विद्यार्थियों को प्राकृतिक कृषि में सस्य क्रियाएं एवं प्राकृतिक खेती के उद्देश्य दृष्टि एवं सिद्धांत पर अपना उद्बोधन दिया.
प्राकृतिक खेती के विषय में पूरे विश्व की दृष्टि भारत की ओर है. ऐसे में पूरे विश्व से वैज्ञानिक एवं शिक्षक प्रशिक्षण के लिए भारत आ रहे हैं. ऐसे में हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम उत्कृष्ट श्रेणी के प्रशिक्षण आयोजित करें.
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. पीके सिंह, परियोजना प्रभारी आईडीपी, नाहेप ने रसायनों के अविवेकपूर्ण उपयोग से होने वाली आर्थिक, पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य को होने वाली हानियों के बारें में बताया.
उन्होंने आगे यह भी कहा कि सभी को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना एवं प्रकृति व पारिस्थितिक कारकों को कृषि में समावेश कर के ही पूरे कृषि तंत्र को ‘‘शुद्ध कृषि’’ में रूपांतरित किया जा सकता है.
डा. पीके सिंह ने कहा कि प्राकृतिक खेती को अपनाने के साथसाथ हमें बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त खाद्य उत्पादन को दृष्टि में रखना चाहिए.
डा. एसएस शर्मा, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने प्राकृतिक खेती के महत्व को देखते हुए एवं इसे कृषि में स्थापित करने के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण किया गया है, जिसे पूरे राष्ट्र में प्राकृतिक कृषि का 180 क्रेडिट का पाठ्यक्रम स्नातक विद्यार्थियों को पढ़ाया जाएगा.
उन्होंने आगे यह भी कहा कि प्राकृतिक खेती को सफल रूप में प्रचारित व प्रसारित करने के लिए सब से पहले जरूरत है कि इस की गूढ़ जानकारी को स्पष्ट रूप से अर्जित किया जा सके, अन्यथा जानकारी के अभाव में प्राकृतिक खेती को सफल रूप से लागू करना असंभव होगा.
डा. एसएस शर्मा ने बताया कि इस प्राकृतिक खेती के पाठ्यक्रम के द्वारा स्नातक छात्र तैयार होंगे, जो किसानों तक इसे सही रूप में प्रचारित करेंगे.
उन्होंने प्राकृतिक खेती पर विभिन्न अनुसंधान परियोजनाएं चालू करने की आवश्यकता पर जोर दिया, वहीं डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान एवं कोर्स डायरेक्टर ने अतिथियों का स्वागत किया. साथ ही, प्राकृतिक खेती एवं जैविक खेती के बारे में विद्यार्थियों को विस्तृत रूप से बताया.
डा. अरविंद वर्मा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती में प्रक्षेत्र पर उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण उपयोग किया जाता है, जबकि जैविक खेती में रसायनमुक्त जैविक पदार्थों का बाहर से समावेश किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवामृत एवं बीजामृत के साथ नीमास्त्र एवं ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जाता है.