गणतंत्र दिवस के मौके पर पुरखों के पारंपरिक तरीकों को अपना कर बुंदलेखंड को पानीदार बनाने वाले ‘जलयोद्धा’ के नाम से चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय को साल 2023 के ‘पद्मश्री अवार्ड’ से नवाजे जाने की घोषणा हुई, तो देश के हर कोने में उन के बारे में लोग जानने को उत्सुक हो उठे.
मूल रूप से बुंदेलखंड इलाके के बांदा जिले के जखनी गांव के बाशिंदे उमाशंकर पांडेय ने बिना किसी सरकारी या गैरसरकारी सहायता लिए ही समुदाय को साथ ले कर पानी बचाने के लिए पारंपरिक विधि ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ अभियान चला कर बुंदेलखंड क्षेत्र को इतना पानीदार बनाया कि जहां कभी पीने के पानी के लिए लाठियां चटकती थीं, वहीं आज सरकार धान क्रय केंद्र खोल कर करोड़ों रुपए की धान खरीदारी किसानों से कर रही है.
उमाशंकर पांडेय की इस मुहिम का ही कमाल है कि जो किसान पहले बरबाद हो चुकी खेती के चलते दूसरे शहरों को पलायन कर चुके थे, वे आज गांव वापस आ कर खेती कर लाखों की आमदनी कर रहे हैं. साथ ही, जो गांव कभी पानी की समस्या से जूझ रहे थे, वहां अब मईजून की भीषण गरमी में भी पानी की कोई समस्या नहीं होती है.
सूखे में खोजा पानी बचाने का उपाय
बुंदेलखंड इलाके में कभी पानी की किल्लत के चलते ट्रेनों से भरभर कर पीने का पानी भेजा जाता था. एक समय ऐसा आया कि जब मालगाड़ी से बुंदेलखंड में पानी लाया जाने लगा था, पानी की किल्लत का यह आलम था कि बुंदेलखंड इलाके के चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, झांसी, ललितपुर, जालौन, सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ सहित कई जिलों के हालात पानी की किल्लत के चलते इतने बिगड़ गए थे कि खेतीबारी पूरी तरह से बरबाद हो चुकी थी. इस इलाके में पानी की समस्या के कारण शादी का इंतजार करतेकरते कई लोग बूढ़े हो जाते थे, पानी के संकट ने उमाशंकर पांडेय के मन पर इतना गहरा असर डाला कि वे बिना किसी की सहायता के अकेले ही पानी बचाने की मुहिम में निकल पड़े. पानी बचाने की इस मुहिम की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस साल उन्होंने यह कमाल कर दिखाया, उस के अगले साल जो लोग उन की इस मुहिम पर हंसते थे, वे खुद ही इस मुहिम का हिस्सा बन कर पानी बचाने में लग गए.
इसी जल संकट के बीच सरकार के नाकाफी पड़ते उपायों के बीच ‘जलयोद्धा’ उमाशंकर पांडेय नें मेंड़बंदी जैसे पारंपरिक तरीके को समुदाय में बढ़ावा दे कर न केवल बुंदेलखंड, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी पानी के संकट को काफी हद तक कम कर दिया है.
जखनी गांव के मौडल की सफलता को देखते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानों को लिखे पत्र में मेंड़बंदी के जरीए जल रोकने की बात कही है. इसी का परिणाम है कि जखनी जल संरक्षण की परंपरागत विधि बगैर प्रचारप्रसार के देश के डेढ़ लाख से अधिक गांवों में पहुंच चुकी है. देश को 1,050 जलग्राम देने का काम भी इसी जलग्राम जखनी मौडल से हुआ है.
उमाशंकर पांडेय ने बताया कि उन्होंने कुछ नया नहीं किया है, बल्कि मेंड़बंदी की पारंपरिक विधि को समुदाय के हाथों दोबारा जीवित कर दिया है. इस के लिए इस 30 साल के भूजल संरक्षण अभियान मेंड़बंदी के लिए किसी प्रकार का कोई अनुदान सरकार या किसी अन्य संगठनों से नहीं लिया है और न ही किसी नवीन ज्ञान का उपयोग किया है, बल्कि बिना किसी सरकारी इमदाद के ही ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ विधि से वर्षा जल संरक्षण की मुहिम को आगे बढ़ाया.
जखनी मौडल जैसा कोई नहीं
‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ के जरीए उमाशंकर पांडेय ने जखनी गांव के खेतों में बनने वाली मेंड़ों पर पौधारोपण का काम भी शुरू किया. इस मुहिम की शुरुआत का ही परिणाम था कि एक साल के भीतर ही 2,552 बीघा वाले इस गांव के 33 कुओं, 25 हैंडपंपों व 6 तालाब पानी से लबालब भर गए.
जखनी गांव में आई इस जलक्रांति ने यहां की तसवीर ही बदल दी. इस गांव की पहचान ‘जखनी जलग्राम’ के नाम से होने लगी. इस का परिणाम यह रहा कि इंटरनैट पर भी जलग्राम मौडल की धूम मच गई.
मुहिम को बढ़ाया आगे
पानी बचाने से हुए जखनी सहित दूसरे गांवों के कायाकल्प की कहानी धीरेधीरे जब स्थानीय मीडिया से राष्ट्रीय लैवल के मीडिया घरानों ने पानी रिपोर्टों के जरीए छापनी और दिखानी शुरू की, तो इस की भनक स्थानीय जिला प्रशासन तक भी पहुंची.
इस के बाद उस समय के जिलाधिकारी हीरालाल ने भ्रमण किया, तो वे अचंभित हुए बिना नहीं रह सके. उमाशंकर द्वारा शुरू किए गए इस अभियान की सफलता का परिणाम यह रहा कि इस की हनक राज्य और केंद्र सरकार तक भी पहुंच गई और इस गांव में पानी बचाने के मौडल को समझने के लिए भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह व नीति आयोग के जल भूमि विकास के सलाहकार अविनाश मिश्रा, उपनिदेशक, नियोजन विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार एसएन त्रिपाठी सहित मंडलायुक्त बांदा एल. वेंकटेश्वरलू, कृषि विश्वविद्यालय, बांदा के कुलपति डा. यूएस गौतम सहित कई अधिकारियों ने यहां का दौरा कर के इस मौडल को देश के दूसरे सूखाग्रस्त हिस्सों में लागू किए जाने की पहल शुरू की.
सभी ने सराहा
जखनी जलग्राम के दौरे से वापस लौटे भारत सरकार के अधिकारियों और जिला लैवल से मिली रिपोर्ट के आधार पर उमाशंकर पांडेय के ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ मौडल के आधार पर भारत नीति आयोग ने साल 2019 के वाटर मैनेजमैंट इंडैक्स में ऐक्सीलैंट परंपरागत मौडल विलेज मानते हुए इसे ‘जखनी जलग्राम’ की संज्ञा दी है.
इस रिपोर्ट को आधार मान कर भारत सरकार द्वारा देश के सूखे से जूझ रहे विभिन्न प्रदेशों में भी 1,050 जलग्राम स्थापित किए जाने का लक्ष्य रखा है.
देशव्यापी बन गई मुहिम
जहां एक ओर मेंड़बंदी के परंपरागत जल संरक्षण के मौडल को बांदा के तब के जिलाधिकारी हीरालाल ने जखनी जल संरक्षण मौडल के नाम से जिले की 470 ग्राम पंचायतों में लागू किया, वहीं दूसरी ओर नीति आयोग, भारत सरकार ने जखनी जलग्राम के मौडल को परंपरागत जल संरक्षण मौडल, जिस में न तो किसी मशीन का इस्तेमाल किया गया और न ही किसी नवीन विधि का, देश के लिए ऐक्सीलैंट मौडल माना. जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार ने ग्राम जखनी की जल संरक्षण विधि ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ को संपूर्ण देश के लिए उपयोगी माना है.
ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने मनरेगा योजना के अंतर्गत देश के सूखा प्रभावित राज्यों में सब से अधिक प्राथमिकता के आधार पर मेंड़बंदी के माध्यम से रोजगार देने की बात कही है. वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानों को लिखे पत्र में सर्वप्रथम मेंड़बंदी के माध्यम से जल रोकने की बात कही है.
बासमती की खेती बयां करती है कहानी
बांदा जनपद में जखनी गांव से निकली पानी बचाने की मुहिम का ही कमाल है कि बांदा जनपद के इतिहास में पहली बार हजारों हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती लहलहा रही है. वहां धान की सब से सुगंधित व महंगे रेट पर बिकने वाली प्रजाति बासमती की खेती हो रही है.
पिछले साल 10 लाख क्विंटल से अधिक बासमती धान केवल बांदा में पैदा किया गया था, जबकि दूसरे जिलों में भी धान की बंपर पैदावार हुई है. बुंदेलखंड में बासमती लाने का श्रेय भी जखनी गांव के किसानों को जाता है. वहां के किसान अकेले 20,000 क्विंटल से अधिक बासमती धान पैदा करते हैं.
जखनी मौडल पर शोध
उमाशंकर पांडेय के ‘खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़’ मौडल के साथ ही ‘जखनी जलग्राम’ मौडल पर कई शोध भी हो रहे हैं. अभी तक इस मौडल को देखने और शोध के इरादे से इजराइल, नेपाल सहित देश के तेलंगाना, महाराष्ट्र और बाकी कई हिस्सों के लोग आ चुके हैं.
बांदा में स्थित कृषि विश्वविद्यालय के छात्र इस सफल मौडल पर शोध कर रहे हैं, जिस से दूसरे लोगों को भी इस का लाभ मिल सकेगा.
जखनी से निकली जल संरक्षण की परंपरागत विधि ‘खेत के ऊपर मेंड़ और मेंड़ के ऊपर पेड़’ संपूर्ण भारत में स्वीकार की जा चुकी है. राज, समाज और सरकार तीनों ने इस विधि का स्वागत किया है. प्रयास भले ही छोटा हो, लेकिन परिणाम राष्ट्रव्यापी है. यह सफलता किसानों के जरीए मिली है, जिस ने बांदा, बुंदेलखंड और दूसरे हिस्सों के खेत और गांव को पानीदार बनाने का रास्ता खोल दिया है.
उमाशंकर पांडेय के चलते देश की बड़ी समस्या के समाधान के लिए उन्हें जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय जलयोद्धा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है.
पहले ‘जलयोद्धा’ और अब ‘पद्मश्री’ के खिताब से नवाजे जा चुके उमाशंकर पांडेय का कहना है कि सरकार ने उन को यह सम्मान दे कर गौरव का पल दिया है.
उन्होंने कहा कि पुरस्कार मिलने से मैं काफी गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं और पुरस्कार मिलने के बाद मुझे अपने काम में और भी खरा उतरना पड़ेगा.
उमाशंकर पांडेय के इस सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा के साथ ही देशभर से उन को बधाइयां तो मिल ही रही हैं, साथ ही उन्हें पानी बचाने की मुहिम, सैमिनार और खेतीबारी से जुड़े नैशनल लैवल के कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाने लगा है.
उमाशंकर पांडेय के जल संरक्षण को प्रोत्साहन
दिल्ली प्रैस की चर्चित पत्रिका ‘सरस सलिल’ और ‘फार्म एन फूड’ में उमाशंकर पांडेय द्वारा पारंपरिक विधियों से किए जा रहे जल सरंक्षण के उपायों पर लेख प्रकाशित कर उन्हें प्रोत्साहित किया जाता रहा है. उमाशंकर पांडेय के पानी बचाने के उपायों पर प्रकाशित लेखों को जहां पाठकों ने सराहा था, वहीं कई पाठक उन से प्रेरित हो कर पानी बचाने की मुहिम का हिस्सा भी बने.
इस के अलावा उमाशंकर पांडेय को मध्य प्रदेश के खजुराहो व चित्रकूट में आयोजित ‘राज्य स्तरीय फार्म एन फूड अवार्ड’, अयोध्या में ‘सरस सलिल अवार्ड’, बस्ती जिले में ‘फार्म एन फूड नैशनल अवार्ड’ से भी नवाजा जा चुका है.